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भी कह सकते है । स्तुति भी असाधारण गुणों की हुआ करती है । वे गुण सख्या में बारह है, जैसे कि
असाधारण बारह गुण
१. अच्छवी-छवि का अर्थ है शरीर । जब स्नातक काय-योग का निरोध करते है तब वे शरीर होते हुए भी शरीर-रहित होते हैं । वे जीवन्मुक्त हो कर प्रायुपर्यन्त अरिहन्त अवस्था मे विचरते रहते है, उनके विचरने से अनन्त जीवों का कल्याण होता है। यह अवस्था शुक्ल ध्यान के तीसरे चरण मे उपलब्ध होती है। शुक्लध्यान का तीसरा चरण चौदहवे गुणस्थान का प्रवेश द्वार है। .
२. अस बले-यथाख्यात-चारित्न या वीतराग संयम सब प्रकार के दोषो से मुक्त होता है । शबल का अर्थ है दोष, सभी दोष मोह-जन्य हुआ करते है । जिन्होने मोह और मोह के सहयोगी कर्मों का क्षय कर दिया है, वे अशबल कहे जाते है । यहा गुण और गुणी मे अभेद सम्बन्ध मानकर गुणी को अशबल कहा गया है।
३. अकम्मसे-जिनमे घातिकर्म लेश मात्र भी नहीं है, उन्हे अकर्माश कहते है।
४. ससुद्धनाण-दसणधरे-तेरहवे गुणस्थान मे प्रवेश करते ही प्रात्मा स्वच्छ एवं निर्मल ज्ञान-दर्शन से सदा के लिए आलोकित हो जाती है ।
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[ द्वितीय प्रकाश