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एव सभी तिर्यञ्च पुराने वैर-भाव को छोड़कर शान्त
चित्त से धर्मोपदेश सुनते हैं। २५. अरिहन्त भगवान के पास आकर अन्य मतावलम्बी
भी उन्हे वन्दना-नमस्कार करते है। २६. अरिहन्त भगवान के समीप आते ही बड़े-बड़
शास्त्राथियों का अभिमान भी लुप्त हो जाता है । २७. अरिहन्त भगवान जहा-जहा विचरते है वहां-वहां
चारो ओर सौ कोस की सीमा में आठ बातें नही होती, जैसे कि चूहे आदि क्षुद्र जीवो से धान्यादि का विनाश
नहीं होता। २८. जन-सहारक रोग आदि उपद्रव नही होते। २९. किसी भी सेना द्वारा वहां कोई उपद्रव नहीं होता। ३०. परचक्र का भय, पर-राज्य की सेना का और चोर
डाकुओं आदि का कोई भय नहीं रहता। ३१. वहां अतिवृष्टि नहीं होती। ३२. वर्षा का प्रभाव भी नही होता। ३३. दुष्काल भी नहीं पड़ता। ३४. पूर्व उत्पन्न उपद्रव तथा व्याधियां सभी एक दम शान्त
हो जाते है। प्रष्ट प्रातिहार्य
इन चौतीस अतिशयों में से अशोक वृक्ष, देवों द्वारा की हुई २६ ]
[ द्वितीय प्रकाश