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का उसे ज्ञान न हो जाय । कांटो की डाली में यदि फल या फल न हों तो कोई भी व्यक्ति उनमें हाथ डालने के लिए तैयार नहीं हो सकता। कष्ट सहकर भी यदि उसे शुभ फल मिलने वाला हो तो वह सभी कष्टो को सहन करने के लिये भी तैयार हो जाता है।
किसी भी क्रिया का फल दो तरह का होता है । एक प्रत्यक्ष और दूसरा परोक्ष, अथवा साक्षात् फल और परम्पराफल । इष्टपूर्ति में आनेवाले मभी विघ्नों का नष्ट हो जाना अपने जीवन मे सदेव अानन्द-मगल रहना, दुःख-दरिद्रता का दूर हो जाना इत्यादि सब प्रत्यक्ष फल है । यद्यपि चिन्तामणि काम-कुम्भ, कल्पवृक्ष, कामधेनु ये सभी पदार्थ लौकिक मनोरथ पूर्ण करनेवाले है, तथापि ये याचना करने के अनन्तर ही फल देने वाले हैं। महामन्त्र नवकार अचिन्त्य फल देने वाला है। जिसे महामन्त्र नवकार की प्राप्ति नही हो पाती उसे उच्च-स्वर्ग और अपवर्ग की प्राप्ति भी नहीं हो सकती। नवकार मन्त्र का जप करने वाला साधक चार गति चौरासी लाख योनियो के भव-भ्रमण से भी मुक्त हो जाता है। इस मन्त्र के जप के बिना दुर्गति का पूर्णतया अवरोध नहीं होता। यदि होता तो ब्रह्म दत्त चक्रवर्ती को सातवें नरक का अतिथि न बनना पड़ता।
महामन्त्र नवकार तो महाफल देनेवाला है । मनोरथ पूर्ण करने वाले चिन्तामणि आदि उत्तम पदार्थ इसी से प्राप्त
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[प्रथम प्रकाश