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सर्वथा भय करके केवलज्ञान, एवं केवलदर्शन प्राप्त कर लिया है, वे ही अरिहन्त होते है, अथवा विश्व में जितने भी इन्द्र, नरेन्द्र एवं असुरेन्द्र है उन सब के जो पूजनीय, प्रशंसनीय एवं वन्दनीय है, उन्हें अरहन्त कहते हैं ।
अथवा जिनकी पुनर्जन्म की परम्परा समाप्त हो चुकी है उन्हें अरुहन्त कहा जाता है ।
___एक ही आत्मा में अरिहन्त, अरहन्त, अरुहन्त, ये तीन पद घटित हो जाते हैं, क्योंकि जो कर्म-शत्रुओं के विजेता है वही तीन लोक के वन्द्य, पूज्य एवं स्तुत्य होते हैं, और वही जन्म-मरण की परम्परा को समाप्त कर पाते है।
जो प्रात्माएं अठारह दोषों से सर्वथा रहित है, वे ही अरिहन्त पद को प्राप्त करती है। वे अठारह दोष निम्नलिखित है।
१. प्राणातिपात, २. मृषावाद, ३. अदत्तादान, ४. क्रीडा, ५. हास्य, ६. रति, ७. अरति, ८. शोक, ९. भय, १०. क्रोध, १५. मान, २२. माया, १३. लोभ, १४. मत्सर, ५५. अज्ञान, १६. मद, १७. निद्रा और १८. राग। १. अनन्त दयालु होने से वे किसी की हिंसा नही करते । २. पूर्ण सत्यपुरुष होने से वे कभी असत्य-भाषी नही
होते।
१८॥
[द्वितीय प्रकाश