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३. निस्पृह एव सन्तोषमय होने से वे कभी छोटी-बड़ी
वस्तु की चोरी नही करते। निष्काम होने से जलक्रीडा, वनक्रीड़ा, मैथुनक्रीडा एवं अपनी लीला नही दिखाते और न कभी करते ही है, क्योंकि लीला दिखाना सांसारिकता है धार्मिकता नही
निर्विकारी होने से वे न तो कभी किसी का हसी-मजाक उड़ाते है और वस्तु-तत्त्व के वेत्ता होने से किसी को हसते हुए जानकर स्वय हसते भी नही।
यथाख्यात-चारित्री होने से उनमे असंयम के प्रति कभी भी रति नही होती। सुदृढ़ आध्यात्मिक जीवन होने के कारण उनके मन मे सयम के प्रति अरति-अरुचि और हैरानी नही होती । वीतशोक होने से उन्हें कभी अभीष्ट के वियोग से शोक नही होता। राग-द्वेष के विजेता होने से वे स्वयं अभय होते है
और दूसरों को भी अभयदान देते है । १०. परमशान्त, परमदयालु होने से वे किसी पर कभी भी
क्रोध नहीं करते। नमस्कार मन्त्र]
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