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णमो अरिहंताणं
द्वितीय प्रकाश
जैनधर्म में या विश्वभर में महान् आत्माएं पाच मानी गई है, जैसे कि अरिहन्त, सिद्ध प्राचार्य, उपाध्याय और साधु । सभी धर्म-शास्त्रों में इन्ही की महिमा वर्णित है. ये पावन नाम किसी व्यक्ति विशेष के नहीं है । आन्तरिक गुणों के विकास से उपलब्ध होने वाले ये पाच महान् मगलमय पद हैं, जिनका सीधा सम्बन्ध भौतिकता से नही केवल प्राध्यात्मिकता से है।
जैनधर्म विजय धर्म है, क्योकि आत्म पर, इन्द्रियों पर, मन पर, विकारों पर, कषायों पर एवं वासनाओं पर विजय प्राप्त करना ही जैन धर्म का मुख्य लक्ष्य है। जनत्व मोक्ष-प्राप्ति में बाह्य क्रियाकाण्डों की अपेक्षा अन्तरंग जागरण को अधिक महत्व देता है, आन्तरिक जागरण करने वाला भले ही कोई पुरुष हो या स्त्री, स्वलिंगी हो या अन्यलिंगी सबके लिए एकही शर्त है वह है और राग-द्वेष पर विजय ।