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जप की विधि
जप तीन प्रकार का होता है, मानस-जप, उपाशु-जप और भाष्य-जप। मानस जप
मनसे चिंतन करते समय जैसे प्रोष्ठ और जिह्वा में कोई क्रिया हिलने-चलने की नहीं होती वैसे ही जिस जप को केवल मन से ही किया जाए वाणी से नहीं, वह मानस-जप कहलाता है। उपांशु जप
उपांशु जप वह कहलाता है जो जप मन्द-मन्द स्वर से किया जाए, जिस जप से अपने को ही मस्ती आए, दूसरे के लिए वह जप उद्वेग, विश्राम-बाधक एव मानसिक उथलपुथल का कारण न बने। भाष्य जप
जो जप पड़ोसियों को भी सुनाई दे, मनमें शांति एव प्रानन्द उत्पन्न करे, परन्तु किन्ही के लिये विश्राम-बाधक और उद्वंग का कारण भी बन सके वह भाप्य-जप है।
जिस जप से मन का पूर्ण सबंध नहीं जुड़ पाता वह जप नही जपाभास है। इनमे पहले प्रकार का जप सर्वोत्तन है, दूसरे प्रकार का जप उत्तम है, तीसरे प्रकार का जप सामान्य है और अकरणीय भी है।
नमस्कार मन्त्र ]
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