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महापुराण
कृतज्ञता ज्ञापन
अब उन सबके प्रति आनन्ददायक धन्यवाद देने का कर्तव्य पूरा करना मेरे लिए शेष रहता है कि जिन्होंने किसी न किसी रूप में इस जिल्दको पूरा करने में मदद की है। सबसे पहले मैं माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमालाके न्यासधारियों और मन्त्रियोंको धन्यवाद देता हूँ कि जिन्होंने इस जिल्दको तैयार करने और प्रकाशित करने के लिए आवश्यक धनराशि जुटायी। और मुझे पूरा विश्वास है कि वे इस कार्यको पूरा करनेके लिए और धनराशि उपलब्ध करायेंगे। पुष्पदन्तकी काव्य प्रतिभाको, दसवीं सदीमें अपने आश्रयदाता भरतके उदार प्रोत्साहनको जरूरत थी। ई. सं. 972 में मान्यखेटके विध्वंस और लूटके बाद कवि निराश हो गया और एक हजार वर्ष तक उपेक्षित रहा, और यदि ग्रन्थमालाके न्यासधारियोंने इस सम्पादककी सहायता न की होती तो इस महाकविको विस्मृतिके गर्तसे निकालनेका उसके प्रयत्न निरर्थक सिद्ध होते।
पुष्पदन्तकी आत्माको इस प्रकार विशेष आनन्द होगा कि उन्होंने एक बार फिर अपने पूर्व आश्रयदाताकी आत्माकी खोज पुस्तकमालाके न्यासधारियोंमें कर ली। इस सम्पादकको आशा है कि वही आत्मा कुछ हजार रुपयोंको उपलब्ध करायेगी कि जिससे उसने ( सम्पादकने ) जो काम हाथमें लिया है उसे वह पूरा कर सके, जिससे कविके अविस्मरणीय काव्यको नष्ट होनेसे बचाया जा सके।
प्रोफेसर हीरालाल जैन किंग एडवर्ड कालेज अमरावतीके प्रति मैं कृतज्ञताका विशेष ऋण अनुभव करता हूँ । उन्होंने इस जिल्दके प्रकाशनके लिए आकाश पाताल एक कर दिया। उन्होंने दूसरे अन्य रूपोंमें भी मेरी सहायता की, जैसे कि पाण्डुलिपियोंको कारंजा और जयपुरसे उधार दिलाने और उन छोटी सूचनाओंको मुझ तक पहुँचाने में कि जो उनको ज्ञात हुई। जैन ग्रन्थोंके साहसी प्रकाशक और जैन साहित्यके अनुभवी विद्वान् पण्डित नाथूराम प्रेमीको भी मैं हृदयसे धन्यवाद देता हूँ।
अपने भू. पू. शिष्य और अब विलिंगडन कालेज सांगलीमें अर्धमागधीके प्रोफेसर श्री आर.जी. मराठेके प्रति मैं यहां अपनी प्रशंसाके उच्चभावको व्यक्त करता है कि उनकी उस सेवा और निष्ठाके लिए जो उन्होंने इस काममें मुझे दी । मेरे लिए उन्होंने प्रतिलिपि करनेका बहुत बड़ा काम किया और मिलान करनेके समय भी मेरी सहायता की।
नोसेरजी वाडिया, कालेज पूना अगस्त 1937
-पी. एल. वैद्य
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