Book Title: Kalpsutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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कल्पमञ्जरी टीका
टीका–'तए णं उदंचंत-' इत्यादि । ततः खलु उदश्चदुत्सवः उद्यदुत्सवः सिद्धार्थभूपः प्रत्यूषकालसमयेप्रातःकालावसरे, प्रमोद-कदम्ब-मोचक-प्रभुजन्म-सूचक-याचक-निकुरम्ब, तत्र-प्रमोदकदम्बमोचकम्आ नन्दवृन्ददायकं यत् प्रभुजन्म तस्य ये सूचकाः ज्ञापका याचका भिक्षुकाश्च तेषां निकुरम्ब-समूह, दैन्यसैन्य-पराभवशून्य दारिद्रय-रूप-सैनिक-पराजय-रहित-दारिद्रयमुक्तम्, अकरोत् । तथा-स नागरिकसमाजवनमपि नगरवासिजनसमूहरूपवनमपि, राजराज-कमला-विलास-हास-वसु-सलिला-ऽऽसारैः-राजराजः कुबेरः, तस्य या कमलालक्ष्मीः-सम्पत्तिः, तस्या यो विलास विलसनं, तं हसतीति तादृशं यद्वसुन्धनं तद्रूपं यत्सलिलं जलं तस्याऽऽसारैः धारासम्पातैः, तैः कीदृशैः ? इत्याह-स्फारै-विशालैः, दुःख-दावानल-समुज्ज्वलत्कील-कवल-प्रबलभयात्-दुःखमेव यो दावानलो बन्यवह्निः तस्य यः समुज्ज्वलन्=प्रज्वलन् कील-शिखा-ज्वाला तस्य यत् कवलं असन तस्मात् यत् प्रबल-प्रकृष्टं भयं तस्मात्, विमोच्य-पृथकृत्य, उद्भिन्दद-मन्दा-ऽऽनन्दा-कर-पूरम्उद्भिन्दन-प्ररोहन्-उत्पद्यमानः अमन्दाऽऽनन्दाकुरपूरः अतिशयितप्रमोदरूपाङ्करसमूहो यस्य यस्मिन् वा ताह
टीका का अर्थ--'तए णं' इत्यादि । तब राजा सिद्धार्थ उत्सव मनाने के लिए उद्यत हुए। प्रात:- काल के अवसर पर उन्होंने आनन्द के समूह को देने वाले भगवान के जन्म को सूचित करने वाले अन्तःपुर के दासदासियों को तथा भिखारियों को दीनतारूपी सेना के पराजय से रहित कर दिया, अर्थात् सदा के लिए उन्हें दरिद्रता से मुक्त कर दिया। तथा नगर-निवासी जनसमूहरूपी वन को भी कुबेर की लक्ष्मी के विलास का उपहास करने वाले, अर्थात् अत्यधिक, धनरूपी जल की विशाल धाराएँ बरसा कर, दुःखरूपी दावानल की जलती हुई ज्वालाओं का ग्रास होने के प्रवल भय से मुक्त करके, उत्पन्न होने वाले अतिशय प्रमोदरूपी अंकुर-समूह से सम्पन्न कर दिया। अभिमाय यह है कि सिद्धार्थ राजाने कुबेर के धन से भी अधिक धन देकर नागरिक जनों को दरिद्रता के दुःख से रहित
सिद्धार्थकृतम भगवज्जमन्मोत्सवः।
॥६७॥
टन मथ-'तपण त्याहि. भामापने पोताना पुत्रनाम-GAR GARLमा भान होय, પણ આવા લોકનાથ થવાવાળા પુત્રનો જન્મ ઉત્સવ ઉજવવામાં તે આખુયે રાષ્ટ્ર તૈયાર થઈ ગયું. રાજાએ, પિતાનેખજાને ખુલ્લા મૂકી દીધે, ને ગરીબવર્ગના દુઃખે મટાડવામાં કાંઇપણ માં રાખી નહિં. પિતાના આશ્રયે પડેલા નોકરીયાત વર્ગને તે, રાજાએ ન્યાલ કરી દીધે, ને તવંગરની કક્ષામાં તે સર્વને મુકી દીધા.
શ્રી કલ્પ સૂત્ર:૦૨