Book Title: Kalpsutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 479
________________ श्रीकल्प सूत्रे ॥४६१॥ कल्पमञ्जरी टीका यतः आत्मा एक एव-सजातीयद्वितीयरहित-एव परलोकात् आगच्छति च-पुनः एकाकी एव लोके गच्छति । न कोऽपि तेन-आत्मना साई-सह, आगच्छति गच्छति च। तदुक्तम्-'एगोह' इत्यादि। ___ एका अद्वितीयः अहमस्मि, कोऽपि मे मम नास्ति। अहं च अन्यस्य कस्यापि नास्मि। एवम् इत्थम् मनसा-चित्तेन अदीनम् उदारम् आत्मानम् अनुशासयेत् ॥१॥ इत्यादिवचनेन एकत्वभावनाभावितस्य गौतमस्वामिनः कार्तिकशुक्लपतिपदि दिनकरोदयसमये सूर्योदयसमकाले एव लोकालोकाऽऽलोकनसमर्थ लोकालोकदर्शनक्षमं निर्वाण मोक्षकारणतया तत्स्वरूपं कृत्स्नं सर्वपदार्थसाक्षात्कारितया सर्वस्वरूपम् प्रतिपूर्ण-वैकल्यरहिततयाऽविकलम् , अव्याहतम् व्याघातवर्जितं निरावरणम् आवरणरहितम् , अनन्तम् अन्तरहितम् , अनुत्तरम् सर्वश्रेष्ठं केवलवरज्ञानदर्शनं केवलज्ञान-केवलदर्शनं च समुत्पन्न: संसार में मेरा कौन है ? और में किस का हूँ, क्यों कि यह आत्मा विना किसी दूसरे आत्मा के साथ-अकेला ही परलोक से आता है और अकेला ही परलोक में जाता है। न कोई आत्मा के साथ आता है, न साथ जाता है। कहा भी है. 'मैं अकेला हूँ-अद्वितीय हूँ। मेरा कोई नहीं है और मैं किसी का नहीं हूँ। इस प्रकार मन से अपने दैन्यरहित-उदार आत्मा का अनुशासन करे !" इस प्रकार एकत्वभावना से प्रभावित हुए गौतम स्वामी को कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा को, ठीक सूर्योदय के समय ही, लोक और अलोक को जानने-देखने में समर्थ, मोक्ष के कारणभूत, समस्त पदार्थों को प्रत्यक्ष करने वाले, अविकल-सम्पूर्ण, सब प्रकार की रुकावटों से रहित, सब प्रकार के आवरणों से रहित, सब प्रकारकी द्रव्य क्षेत्र काल भाव संबंधी परिधियों से रहित तथा शाश्वतस्थायी और सर्वोत्तम केवलज्ञान और અને હું કોઈ નથી, કારણ કે આત્મા બીજા કોઈ પણ આત્માના સાથ વિના એકલે જ પરલેકમાંથી આવે છે. અને એકલે જ પરલોકમાં જાય છે. આત્માની સાથે કઈ આવતું પણ નથી અને જતું પણ નથી. કહ્યું પણ છે- स-मद्वितीय छु. भा३३ नथी भने हुना नथी. या प्रमाणे भनथी पाताना न्यडित२ मात्भानु मनुशासन ४२." આ પ્રમાણે એકત્ર ભાવનાથી પ્રભાવિત થયેલ ગૌતમ સ્વામીને કાર્તક સુદ એકમે બરાબર સૂર્યોદય સમયે જ લેક અને અલકને જાણવા–દેખવાને સમર્થ મોક્ષના કારણભૂત, સમસ્ત પદાર્થોને પ્રત્યક્ષ કરનાર, અવિકલ-સંપૂર્ણ સઘળી જાતની આડખિલીઓ વિનાનું, સઘળા પ્રકારના આવરણે વિનાનું, સઘળા પ્રકારની દ્રવ્ય, ક્ષેત્ર, કાળ અને गौतम स्वामिनः केवलमाप्तिः। ॥सू०११६।। તે ॥४६॥ * છે શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૨

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