Book Title: Kalpsutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 496
________________ श्रीकल्प कल्पमञ्जरी सूत्र ॥४७८॥ टीका भवतोऽत्र द्वे संग्रहणीगाथे द्वादशववर्षेषु गौतमः सिद्धो वीराद विंशतौ सुधर्मा । चतुष्पष्टयां जंबूः, व्युच्छिन्नानि तत्र दशस्थानानि ॥१॥ मनः १, परमावधि २, पुलाक ३, आहारक ४, क्षपको ५, पशमाः ६, कल्प७ । संयमत्रिकं ८, केवलं ९, सिद्धि १० श्च जंब्यां व्युच्छिन्नानि ॥२॥ ॥०१२०॥ यहाँ दो संग्रहणीगाथाएँ हैं बारसवरिसेहि गोयमु, सिद्धो विराउ बीसइ सुहम्मो । चउसट्ठीए जंबू, वुच्छिन्ना तत्थ दस ठाणा ॥१॥ मण १, परमोहि २, पुलाए ३, आहारग४, खवग ५, उवसमे ६, कप्पे७ । संजमतिग ८, केवल ९, सिज्झणा १० य जंबुम्मि बुच्छिन्ना ॥२॥ इति । श्रीवीर निर्वाण से बारह वर्ष बीतने पर गौतम, वीस वर्ष बीतने पर सुधर्मा और चौसठ वर्ष बीतने पर जंबूस्वामी का निर्वाण हुआ। उसके पश्चात् दशस्थान विच्छिन्न हो गये ॥१॥ जंबूस्वामी के बाद विच्छिन्न दश स्थान यह है-(१) मनापर्यवज्ञान, (२) परमावधिज्ञान, (३) पुलाकलब्धि, (४) आहारक शरीर, (५) क्षपकश्रेणी, (६) उपशमश्रेणी, (७) जिनकल्प, (८) तीन संयम, (९) केवलज्ञान, (१०) मुक्ति ॥२॥ ॥सू०१२०॥ દશ સ્થાને સાથે બતાવતી બે ગાથાઓ અહિં વણી લેવામાં આવી છે– बारस बरिसेहि गोयमु सिद्धो वीराउ वीसइ सुहम्मो । चउसट्ठीए जंबू, वुच्छिन्ना तत्थ दसठाणा ॥१॥ मण परमोहि पुलाए, आहारग, खवग, उवसमे, कप्पे । संजमतिग केवल सिज्झणा य जंबुम्मि चुच्छिन्ना ॥२॥ इति । અર્થાતુ-શ્રીવીર નિર્વાણુથી બાર વર્ષે ગૌતમ, ત્રીસ વર્ષ વીતતાં સુધર્મા અને ચોસઠ વર્ષ વીતતાં જંબુનું નિર્વાણુ થયું. તે પછી નીચે જણાવેલા દશ સ્થાનકે લેપ થઈ ગયાં. स्वामी माहारथये स्थानी-(१) भन: पवज्ञान, (२) ५२भ भवधिज्ञान, (3) yarelu, (४) मा २४ शरीर, (५) क्ष५४श्रेणी, (E) पशभश्रेणी, (७) Grazey, (८) संयम (6) सज्ञान, (१०) भुटित. (सू०१२०) जंबूस्वामि परिचय वर्णनम् । ०१२०॥ ॥४७८॥ શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૨

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