Book Title: Kalpsutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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श्रीकल्पसूत्रे ॥७६॥
KAARBAAA!
पात्रं न तापयति नैव मलं प्रसूते, स्नेहं न संहरति नैव गुणान् क्षिणोति । द्रव्यावसानसमये चलतां न धत्ते, पुत्रोऽयं कुलगृहे किल कोऽपि दीपः ॥१॥ एष लोकोत्तरगुणगणयुतः सुतः प्रभूतप्रमोदं जनयति । अपि चशीतलं चन्दनं प्रोक्तं ततश्चन्द्रः सुशीतलः । चन्द्र - चन्दनतः शीतो महान् नन्दनसङ्गमः ॥२॥
" जो पात्र को संतप्त नहीं करता, मल को उत्पन्न नहीं करता, स्नेह का संहार गुणों का नाश नहीं करता और द्रव्य के विनाश काल में अस्थिरता को प्राप्त नहीं होता है, पुत्ररूप दीपक, कुलरूपी गृह में कोई विलक्षण ही दीपक है " ॥ १ ॥ इति ।
यह लोकोत्तर गुणगणों से युक्त पुत्र बहुत आनन्ददायी होता है। और भी कहा है-चन्दन शीतल कहा गया है, उससे भी शीतल चन्द्र है, और चन्द्र-चन्दन से भी महान शीतल पुत्र का स्पर्श है ॥ १ ॥
मिसरी मीठी होती है, उससे भी मीठा अमृत होता है, और उससे भी मीठा पुत्र का स्पर्श होता है ॥ २ ॥
नहीं करता,
ऐसा यह
જે પાત્રને સંતપ્ત કરતા નથી, મલને ઉત્પન્ન કરતા નથી. સ્નેહના નાશ નથી કરતા, ગુણ્ણાના વિનાશ નથી કરતા, તેમજ દ્રવ્યના વિનાશ કાળમાં અસ્થિરતાને પામતા નથી, તેવા આ પુત્રરૂપ દીવા કુળરૂપી ઘરમાં કોઇ विपक्ष
ही छे. ॥ १ ॥ इति ।
શ્રી કલ્પ સૂત્ર : ૦૨
આ લેાકેાત્તર ગુણગણાથી યુક્ત પુત્ર ઘણાજ આનન્દને આપવાવાળા હોય છે. વળી પણ કહ્યું છે—
ચંદન શીતળ કહેવામાં આવ્યુ' છે, તેમજ તેનાથી પણ શીતળ ચંદ્ર છે, અને ચંદ્ર તથા ચંદનથી પણ મહાન शीतण पुत्रना स्पर्श छे ॥ २ ॥
कल्प
मञ्जरी टीका
त्रिशला
कृत - पुत्रप्रशंसा.
॥७६॥