Book Title: Kalpsutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 459
________________ श्री कल्प सूत्रे ॥४४॥ TRAJASTHANIMORE कल्पमञ्जरी टीका निकटे संप्राप्ता सा च प्रमुम् आदक्षिणप्रदक्षिणम् अञ्जलिपुटं बद्धा तं बद्धाञ्जलिपुटं दक्षिणकर्णमूलत आरभ्य ललाटपदेशेन वामकर्णान्तिकेन चक्राकारं त्रिः परिभ्राम्य ललाटदेशे स्थापनरूपं करोति, कृत्वा वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा एवम् अनुपदं वक्ष्यमाणं वचनम् अवादीत-हे भदन्त ! संसारभयोद्विग्ना भवभयत्रस्ताऽहं देवानुप्रियाणां भवताम् अन्तिके समीपे प्रवजितुं दीक्षा ग्रहीतुम्-इच्छामि खलु । ततः खलु श्रमणो भगवान् महावीरः तां चन्दनवाला अग्रे-पुरतः कृत्वा अन्याः चन्दनवालातिरिक्ताः बही अनेकाः उपभोग राजन्याऽऽमात्यप्रभृतीनाम् कन्याः प्रव्राजयति-दीक्षयति । पुनश्च बहवः अनेके-उग्रभोगादिकुलममताः-नरा नार्यश्च पश्चाणुवतिकं सप्तशिक्षावतिकम् एवम् अनेन मकारेण द्वादशविधंद्वादशप्रकारकं गृहिधर्म पतिपद्य-स्वीकृत्य श्रमणोपासका श्रावकाः जाता। टीका का अर्थ-उस काल और उस समय में भगवान महावीर स्वामी को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई जानकर चन्दनबाला दीक्षा ग्रहण करने के लिए उत्सुक होकर भगवान् के निकट पहुँची। उसने भगवान् को आदक्षिण प्रदक्षिण की-हाथजोड कर, जुडे हुए हाथों को दाहिने कान से आरंभ करके ललाट की तरफ से बायें कान के पास तक चक्राकार तीन बार घुमाकर ललाट-प्रदेश पर स्थापित किया। आदक्षिणप्रदक्षिणा करके वन्दना की, नमस्कार किया। वन्दना-नमस्कार करके आगे कहे हुए वचन कहे-'हे भगवन् । संसार के भय से त्रास को प्राप्त मैं आप-देवानुप्रिय के समीप दीक्षा ग्रहण करना चाहती हूँ। तब श्रमण भगवान् महावीरने चन्दनबाला को आगे करके चन्दनबाला के अतिरिक्त और भी बहुत-सी उग्रकुल, भोगकुल, राजन्यकुल (क्षत्रियकुल) की तथा अमात्य आदि की कन्याओं को दीक्षा प्रदान की। तत्पश्चात् उग्रकुल, भोगकुल आदि कुलों में जन्में हुए अनेक नर-नारियोंने पाँच अणुव्रत तथा सात शिक्षाप्रत रूप द्वादश प्रकार के गृहस्थ धर्म को अंगीकार किया और श्रावक-श्राविका बने । | વિશેષાથ-બચપણમાં જ સંસારનો દુઃખદુ અનુભવ મળતાં, ચંદનબાલામાં તીવ્ર વૈરાગ્યની ધારા છૂટી. સંસાર તરફને વેગ ઘટવા માંડ! ભગવાનને આહારદાન આપ્યા પછી, તેનું મન પ્રવજ્યા તરફ રહેતું હતું. તે કાળ તે સમયે ભગવાનને કેવલજ્ઞાન ઉત્પન્ન થયું જાણું, ચંદનબાલાની દીક્ષા માટેની તાલાવેલી જાગી. અને ભગવાનની પાસે આવી દીક્ષાની માગણી કરી. ભગવાને તેને દીક્ષા આપી. ચંદનબાલાની પાછળ, ઉંગકુળ, ભેગકુળ આદિની બહેન દિકરીએ, વહુઆરે, માતાઓ, પ્રૌઢાઓ અને કુમારિકાઓએ પણ દીક્ષા લીધી. જેઓ દીક્ષા લેવા અસમર્થ હતા પર તેઓએ પાંચ અણુવ્રત અને સાત શિક્ષાત્રત, એમ બાર પ્રકારને ગૃહસ્થ ધર્મ અંગીકાર કરી શ્રાવક શ્રાવિકા થયા. चन्दनबालायाः दीक्षाग्रहणम्। |सू०११४॥ माश ॥४४॥ શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૨

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