________________ س or س س (17) 172.. तीच गुप्ति के पालन पर भिन्न-भिन्न दृष्टान्त 173. क्षमायाचना करके ही प्रतिक्रमण करना कल्पता है; इस पर उदायी राजा का दृष्टान्त 174. कुम्हार और धूर्तों की कथा 175. क्रोध न छोड़े, इस पर क्रोधी ब्राह्मण का दृष्टान्त 176. कृत अपराध की क्षमा माँगने पर मृगावती का दृष्टान्त 177. अलिया-गलिया करने पर सासु-दामाद का दृष्टान्त 178. क्रोधपिंड पर घेवरिया मुनि का दृष्टान्त 179. मानपिंड पर सेवैया मुनि का दृष्टान्त 180. मायापिंड पर आषाढ़भूति का दृष्टान्त 181. लोभपिंड पर सिंहकेसरिया मुनि का दृष्टान्त 182. अथ प्रशस्तिः (ग्रंथकर्ता का संक्षिप्त परिचय) xxxxxxxx س 9 9 Nor س .439 441 444 445 448