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ज्यों था त्यों ठहराया
सत्तर साल मेरे हिसाब से ठीक प्राकृतिक उम्र है सत्तर से ज्यादा आदमी बोझपूर्ण मालूम होने लगेगा। खुद को भी बोझ लगने लगेगा, औरों को भी बोझ लगने लगेगा। और अगर सत्तर साल जिंदगी में कुछ न कर पाए, तो अब और क्या करोगे? अब विदा होने का क्षण
गया।
सत्तर साल से ज्यादा अगर चिकित्साशास्त्र ने लोगों को जिलाने की कोशिश की, तो उसका अंतिम परिणाम यह होगा कि सभी समृद्ध देश के विधानों में इस बात को जोड़ना ही होगा-जहां और जन्मसिद्ध अधिकार हैं, वहां एक जन्मसिद्ध अधिकार और जोड़ना होगा कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मृत्यु का वरण करने का अधिकार है। तुम उसे जबर्दस्ती जिला नहीं सकते। वह अगर मरना चाहता है, तो तुम्हें उसे मरने की सुविधा देनी होगी। तुम कौन हो, जो उसे जबर्दस्ती ?
अब्दुल करीम! यह उम्र छोटी नहीं है। यह उम्र ठीक उतनी है, जितनी चाहिए। प्रकृति ने उतना दिया है, जितना चाहिए- न ज्यादा, न कम। लेकिन इस उम्र का अगर तुम आनंद
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है जरूरत से बहुत ज्यादा है। क्योंकि
के लिए उपयोग कर लो, तो यह शाश्वत है, बहुत एक क्षण भी आनंद का अगर मिल जाए, तो बस तुमने चख ली बूंद अमृत की तुम अमर हुए। फिर यह देह जाएगी, यह मन जाएगा, मगर तुम जहां हो वहीं हो।
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श्री रमण के मृत्यु के समय जब उनसे पूछा गया कि भगवान, आप विदा हो रहे हैं। आप पागल हुए हो! कहां जाऊंगा? जहां हूं -यहीं रहूंगा। जैसा हूं--वहीं ज्यूं था ल्यूं ठहराया !
कहां जाएंगे? उन्होंने कहा, रहूंगा। यहीं के यहीं रहूंगा जो अपने साक्षी भाव में बैठ गया, उसको न अब कहीं आना है, न कहीं जाना है। वह शाश्वत का अंग हो गया; वह अनंत का हिस्सेदार हो गया; वह परमात्मा का रूप हो गया; वह परमात्मामय हो गया। इसलिए तो हमने बुद्ध को भगवान कहा। महावीर को भगवान कहा। कहने का कारण था। भगवत्ता को उपलब्ध हो गए।
भगवत्ता का अर्थ है: जिसने भी जान लिया कि मैं जन्म के पहले था और मृत्यु के बाद भी रहूंगा; जिसने अपने स्वरूप को पहचान लिया। इतना ही करो। फिर किस बहाने करते हो, यह तुम्हारी मर्जी ।
इश्के बुतां मूर्तियों से प्रेम हो चलेगा तो कोई प्यारी मूर्ति चुन लो और अगर शून्य तक सीधी छलांग लगाने का साहस हो, तो कोई जरूरत नहीं मूर्ति चुनने की
मूर्ति चुनो, तो प्रार्थना तुम्हारा पथ होगा। और अगर अमूर्ति चुनो, तो ध्यान तुम्हारा पथ होगा। मगर ये पथ हैं। और ये सारे पथ एक ही शिखर पर पहुंच जाते हैं।
मैंने सारे पंथों को छानबीन कर देखा है, ये सब एक ही शिखर पर पहुंच जाते हैं। कोई कोई कृष्ण को भजता आता है।
कुरान गुनगुनाता आता है कोई गीता गुनगुनाता आता है कोई शांत-साक्षीभाव में आता है। मगर सब को आ जाना है है, जो अमृत है।
अपने उस बिंदु पर, जो शाश्वत
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