Book Title: Jyo tha Tyo Thaharaya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 215
________________ ज्यों था त्यों ठहराया लटपटानंद जैसे ही कुछ उपद्रव में फंस जाते। बच गए--जान बची और लाखों पाए, लौट कर बुडू घर को आए! अब तुम पूछ रहे हो कि सत्य की खोज के लिए अनुशासन चाहिए या उन्मुक्त जीवन? आत्मानुशासित उन्मुक्त जीवन। अनुशासन और उन्मुक्त जीवन में तो विरोध है। अनुशासन दूसरों का--और उन्मुक्त जीवन अपना--इसलिए विरोध होने वाला है। लेकिन मेरा शब्द समझो: आत्मानुशासित उन्मुक्त जीवन। स्वयं के विवेक के प्रकाश में जीया गया स्वतंत्र जीवन। कोई विरोध नहीं है। अनुशासन और उन्मुक्त जीवन में विरोध है। अनुशासन का अर्थ: दूसरे जो कह रहे हैं--ऐसा करो। और तुम्हारे प्राण कुछ और करना चाहते हैं, तो संघर्ष है। और जिस चीज से भी तुम्हारे भीतर संघर्ष पैदा होता है, वही चीज तुम्हें कमजोर करती है, नष्ट करती है, भ्रष्ट करती है। मैं कहता हूं: आत्मानुशासित उन्मुक्त जीवन। तुम्हारा अनुशासन तुम्हारे अपने ध्यान से आना चाहिए, तुम्हारे बोध से आना चाहिए। फिर उन्मुक्त जीवन में और अनुशासन में कोई विरोध न रह जाएगा। क्योंकि जहां से उन्मुक्त जीवन आता है, वहीं से तुम्हारा अनुशासन भी आएगा। तब क्रांति घटित होती है। तब तुम्हारे भीतर एक संगीत बजने लगता है। एक तालमेल बैठ जाता है। सब विरोध गिर जाते हैं। सब द्वंद्व गिर जाते हैं। उसी विरोध के कारण तुम्हें अब यह सवाल उठा है कि मैं दुविधा में हूं कि संन्यास लूं अथवा विवाह करूं! यह अथवा की बात ही नहीं। संन्यास भी लो--और विवाह भी करो। क्योंकि संन्यास का विवाह से कुछ विरोध नहीं। असल में संन्यास लेकर अगर विवाह न किया, तो लटपटानंद हो जाओगे। संन्यास लो और विवाह भी करो। संन्यस्त हो कर संसार में रहो। जैसे कमल जल में रहता है। यही संन्यास की ठीक-ठीक परिभाषा है। भगोड़ापन नहीं। संसार से भागना नहीं है। संसार को बोधपूर्वक जीओ। संसार परमात्मा की अनुकंपा है। उसके द्वारा दिया गया एक विराट अवसर है। इसके सब रंग-रूप पहचानो। इसकी सब गतिविधियों को जीओ। इतना ही खयाल रहे कि बेहोशी में नहीं। बस। होश में जीओ। होशपूर्वक जीओ। होशपूर्वक जो भी किया जाएगा, उससे बंधन पैदा नहीं होता; उससे मुक्ति आती है। और बेहोशी में जो भी किया जाएगा, उससे बंधन आता है, मुक्ति नहीं आती। बेहोशी में तुम संन्यास भी ले लो; घर से भी भाग जाओ, तो भी तुम बंधे ही रहोगे--मुक्त नहीं हो सकते। क्योंकि बेहोशी बंधन है। संसार नहीं बांधे हुए है तुम्हें, तुम्हारी मूर्छा बांधे हुए है। इसलिए मेरे पास तो एक ही शिक्षा है--एकमात्र--और वह है कि बेहोशी तोड़ो, मूर्छा तोड़ो, जागरण का सूत्र पकड़ो। फिर जागरण का सूत्र अगर तुमसे कहे कि विवाह की कोई जरूरत नहीं, तो मत करना। और जागरण का सूत्र तुमसे कहे कि नहीं, अभी कुछ वासना भीतर शेष है, जिसे जी कर ही मैं पार कर सकूँगा, तो विवाह करना--बिना किसी अपराध-भाव के। फिर तुम्हारे जागरण से जो Page 215 of 255 http://www.oshoworld.com

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