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ज्यों था त्यों ठहराया
तो चंदूलाल ने उसकी आकांक्षा पूरी कर दी। च्यूटी ले दी। मगर एक पुलिस वाले ने पकड़ लिया और ऐसी कुटाई की चंदूलाल की कि ची बुलवा दी! जमीन पर गिरा कर छाती पर बैठ गया! उसने भी मौका नहीं छोड़ा। उसको पिटाई करने में मजा आ रहा होगा! उसने यह मौका देख कर पिटाई कर दी। धर्म की रक्षा के लिए तो पिटाई की जा सकती है! और भीड़ ने भी उसका साथ दिया। और भीड़ ने भी रसीद किए कुछ हाथ। क्योंकि ऐसा मौका कौन छोड़े! जिन-जिन के दिल में गुबार था, जिन-जिन को क्रोध था--किसी पर भी रहा हो--उन्होंने चंदूलाल की पिटाई कर दी। कपड़े फट गए। लहूलुहान हो गया मुंह। खरोंचें आ गईं। और वह पुलिस वाला छाती पर बैठा है और दे रहा धमाधम और कह रहा कि देख, अब आज से हर एक स्त्री को अपनी मां-बहन-बेटी समझ। और तभी गुलाबो वहां आई। और चंदूलाल से बोली कि ऐ पप्पू के पिता, ज्यादा चोट वगैरह तो नहीं आई? चंदूलाल ने पुलिस वाले की तरफ देखा और कहा कि नहीं बहनजी, बिलकुल चोट नहीं आई! जब सभी स्त्रियों को अपनी बहनजी मानना है, और पुलिस वाला यहीं बैठा है! अभी फिर चढ़ बैठेगा छाती पर कि फिर तुमने हरकत की! तो वह गुलाबो, अपनी पत्नी तक को बहनजी कह रहा है! यह क्या पागलपन है! यह जबर्दस्ती के आरोपण, जबर्दस्ती का आचरण! कोई आवश्यकता नहीं है किसी स्त्री को मां मानने की, या बहन मानने की, या बेटी मानने की, या पत्नी मानने की। कोई आवश्यकता नहीं है। वह वह है; तुम तुम हो। पुरुषों के बाबत नहीं कहते तुम से तुम्हारे ब्रह्मचारीजी कि हर एक पुरुष को अपना पिता मानो, बेटा मानो, भाई मानो! क्यों? जब स्त्रियों के पीछे इतने दीवाने हैं, तो पुरुषों का भी तो कुछ इंतजाम कर दो! लेकिन पुरुषों के संबंध में कुछ नहीं कहते। क्यों? क्योंकि आरोपण करने की कोई जरूरत नहीं। नैसर्गिक वासना को दबाना है। साक्षी बनो, कन्हैयालाल द्विवेदी! इन व्यर्थ की बातों से कुछ भी न होगा। लटपटानंद नर्क में पड़े होंगे, अगर कहीं कोई नर्क है। अब तुम पूछते हो कि आपकी बातें मुझे आकर्षित करती हैं। सौभाग्यशाली हो कि बुद्धि बिलकुल भ्रष्ट नहीं हो गई; कि थोड़ा बहुत बोध बाकी है; कि थोड़ी बहुत समझ शेष है। कि लटपटानंद बिलकुल बर्बाद नहीं कर गए तुम्हें। और तुम कहते हो, विचित्र भी लगती हैं। विचित्र इसलिए लगती हैं कि वे लटपटानंद...! लटपटानंद विचित्र नहीं लगे, तो मेरी बातें विचित्र लगेंगी ही। जरा नाम तो देखो--लटपटानंद! और विचित्र न लगा! और मेरी बातें विचित्र लगेंगी फिर। क्योंकि चुनाव करना पड़ेगा अब। तय करना होगा। और तुम निश्चित भाग्यशाली हो कि तुम कहते हो कि उनकी शिक्षा के अनुसार चल नहीं पाया। अच्छा हुआ कि नहीं चल पाए। चल पाते, तो पागलखाने में होते। चल पाते, तो बस
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