Book Title: Jyo tha Tyo Thaharaya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 240
________________ ज्यों था त्यों ठहराया ठंडा और गर्म एक ही सिक्के के दो पहलू हैं सुख और दुख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। -- विज्ञान और धर्म -- एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। पूरब और पश्चिम- एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। मैंने शंकराचार्य का जो विरोध किया है, उस विरोध में कार्ल माक्र्स का विरोध भी सम्मिलित है। मैं यह कह रहा हूं सिर्फ कि क्यों एक सिक्के के पहलू को स्वीकार करते हो और दूसरे पहलू को इनकार करते हो? और दूसरे को इनकार करने में कोई वैज्ञानिकता नहीं है, कोई तर्क नहीं है। और उसके दुष्परिणाम दोनों ने भोगे हैं। पश्चिम दुष्परिणाम भोग रहा है कि धर्म खो गया है पश्चिम में पदार्थ ही पदार्थ रह गया है तो विज्ञान बहुत बढ़ा विज्ञान ने तो अंबार लगा दिया खोजों का और आदमी की आत्मा बिलकुल खो गई। वस्तुएं इकट्ठी हो गई आदमी खो गया! यहां हमने उलटा काम किया। आत्मा तो बच गई, मगर रोटी खो गई, छप्पर खो गया, कपड़े खो गए। यह आत्मा भी बड़ी दीन-हीन हो गई, बड़ी दरिद्र हो गई, बड़ी पाखंडी हो गई। हो ही जाएगी। पश्चिम में विक्षिप्तता पैदा हो रही है, क्योंकि आत्मा न हो तो संतुलन खो जाता है। शरीर ही शरीर बचा। और पूरब भी आत्मघात की कगार पर खड़ा हुआ है। देखे हो रोज-रोज क्या होता जा रहा है! लोगों की भीड़ बढ़ती जाती है--भोजन रोज कम होता जाता है। वस्त्र कम होते जाते हैं। जमीन कम होती जाती है। लोगों की भीड़ बढ़ती जाती है। अगर रोका न गया भावों का चढ़ाव तो एक दिन अखबारों में छपेंगे ये भाव गेहूं दस पैसे जोड़ी चावल पचास पैसे कौडी चना एक रुपए में पचास पांच रुपए में किलो घास दूध एक रुपए बूंद घी एक रुपया दस पैसे सूंघ एक रुपया तोला आम कच्चे और दस रुपए में तीन बच्चे! इस सबका जिम्मा किस पर होगा ? शंकराचार्य इसमें जिम्मेवार हैं। मैं जो कह रहा हूं, शंभू महाराज को कहना चंद्रकांत भारती, मेरी बातों का उत्तर दें। मेरे कच्छ आने का विरोध करने से मेरी बातों का उत्तर नहीं होता। इससे सिर्फ भय मालूम होता है, कायरता मालूम होती है, नपुंसकता मालूम होती है। और मुझे जो कहना है, वह मैं कच्छ में रहूं कि पूना में, मैं कहूंगा कुछ फर्क पड़ता नहीं कहां रहूंगा, इससे क्या फर्क पड़ता है? जो मुझे कहना है, वह कहूंगा, जब तक कि तुम उसे गलत सिद्ध न कर दो। Page 240 of 255 http://www.oshoworld.com

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