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ज्यों था त्यों ठहराया
सारसूत्र हैं। एक धम्मो सनंतनो बुद्ध ने कहा है वह है सनातन-धर्म, जो सारे धर्मों का निचोड़ है।
धर्म आते हैं और जाते हैं, सनातन धर्म न आता है न जाता है। सनातन धर्म तो सत्य का पर्यायवाची है। हिंदू रहें दुनिया में न रहें, कोई फर्क नहीं पड़ता - सनातन धर्म रहेगा! किसी और रंग-ढंग में रहेगा, किसी और वेश में रहेगा, किसी और शास्त्र से प्रकट होगा, किसी और बुद्ध के वचनों में झलकेगा हिंदुओं के होने से कुछ फर्क नहीं पड़ता।
लेकिन हिंदुओं को यह भ्रांति है कि उनका धर्म सनातन है। जैनों को यह भ्रांति है कि उनका धर्म सनातन है। जैन दवा करते हैं कि वेद से भी पुराना है उनका धर्म, क्योंकि वेद में, ऋग्वेद में जैनों के पहले तीर्थकर के नाम का उल्लेख है। इससे बात तो यह सिद्ध होती है कि ऋग्वेद बाद में लिखा गया होगा जैनों के पहले तीर्थकर, पहले हो चुके होंगे और सम्मानपूर्वक उल्लेख है जीवित अगर होते तो सम्मान तो हो ही नहीं सकता था। जीवित
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बुद्ध का तो हमेशा अपमान होगा है! कम से कम, ज्यादा हो गए होंगे, तब तक सम्मान मिल पाता है।
कम से कम मरे हुए तीन सौ साल तो हो ही गए होंगे, मगर कम से कम तीन सौ साल का फासला तो चाहिए,
जीवित बुद्धों को तो सूली लगती है, पत्थर मारे जाते हैं, कानों में खीले ठोंके जाते हैं। मुर्दा बुद्धों की पूजा की जाती है !
इतने सम्मान से उल्लेख है आदिनाथ का, इससे सबूत मिलता है कि देर हो गई होगी, काफी समय हो गया होगा आदिनाथ को हुए। अगर जीवित होते तो वेद उनका सम्मानपूर्वक उल्लेख नहीं कर सकते थे, क्योंकि आदिनाथ और वेद में क्या तालमेल? कोई तालमेल नहीं ।
वेद बहुत ही मॉलिक है, बहुत ही सांसारिक है, बहुत पदार्थवादी है। वेद में कुछ सूत्र हैं जो अध्यात्म के हैं। निन्यानबे प्रतिशत सूत्र तो बिलकुल ही भौतिकवादी हैं--इतने भौतिकवादी क भौतिकवादी भी शरमा जाए। गौ भक्तों की ऐसी-ऐसी प्रार्थनाएं वेदों में हैं कि मेरी गऊ के थनों में दूध बढ़ जाए और दुश्मन की गऊ के थनों का दूध सूख जाए। क्या धार्मिक बातें हो रही हैं?
और वेद के समय में गौ हत्या जारी थी, अश्वमेध यज्ञ होते थे, गौमेध यज्ञ होते थे, नरमेध यज्ञ भी होते थे, जिनमें आदमियों की बलि दी जाती थी। गऊओं की बलि दी जाती थी, घोड़ों की बलि दी जाती थी। और ये वेद को मानने वाले लोग शोरगुल मचाए फिरते हैं-गौ-हत्या बंद होनी चाहिए ! वेदों में कहीं कोई गौ-हत्या बंद करने का उल्लेख नहीं है। आदिनाथ बिलकुल विरोध में थे--किसी भी तरह की हिंसा के। जैन धर्म का तो मूल ही -- अहिंसा परम धर्म है।
आदिनाथ का सम्मान से उल्लेख इस बात का सूचक है कि काफी समय हो चुका होगा आदिनाथ को मरे तो जैनों के पास तर्क तो है कि उनका धर्म इनसे भी ज्यादा पुराना है। लेकिन पुराने होने से कोई सनातन नहीं होता।
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