Book Title: Jyo tha Tyo Thaharaya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

View full book text
Previous | Next

Page 248
________________ ज्यों था त्यों ठहराया अगर यह सच है, तो मेरे संन्यासियों से कहने से कोई प्रयोजन नहीं। अखबारों में वक्तव्य दो कि तुम्हारा वक्तव्य गलत छापा गया है, विकृत किया गया है। और अखबारों में स्वीकार करो कि तुम मुझे भगवान स्वीकार करते हो, प्रज्ञावान स्वीकार करते हो, विद्वान स्वीकार करते हो। ये स्वीकार नहीं कर सकेंगे अखबारों में वे। क्योंकि ये स्वीकार करेंगे, तो फिर मेरा कच्छ आने में विरोध कैसे करेंगे? विरोध तो वे यह कर रहे हैं कि मेरे कच्छ आने से कच्छ की संस्कृति नष्ट हो जाएगी, कच्छ की सभ्यता नष्ट हो जाएगी, कच्छ तो पाताल में चला जाएगा--मेरे आने से! इनमें से किसी को कच्छ की अभी तक कोई सुध न थी। मैंने कच्छ जाने की बात की, तो इनको कच्छ की बड़ी प्रीति जगी है! सबको कच्छ की प्रीति जगी है। कच्छ को बचाना है! और मैं जो दे रहा हूं, वह संस्कृति नहीं तो क्या है? निश्चित ही वह बीसवीं सदी की संस्कृति है। बीसवीं की ही नहीं, इक्कीसवीं सदी की संस्कृति है। मैं जो दे रहा हूं, वह भविष्य की सभ्यता है। और तुम जो बचा रहे हो, वे अतीत की मुर्दा लाशें हैं, जिनको कभी का दफना दिया जाना चाहिए था। इसलिए वक्तव्य वे दे भी नहीं सकते, क्योंकि अगर कहें कि यह भगवान है व्यक्ति, प्रज्ञावान है, तो फिर इससे कैसे संस्कृति नष्ट हो जाएगी और सभ्यता नष्ट हो जाएगी? और जब मेरे शिष्य होने को तैयार हैं...। और मुद्दा क्या है कि गौ-हत्या बंद हो जाए, तो वे मेरे शिष्य होने को तैयार हैं। शंकराचार्य को छोड़ने को इतनी जल्दी तैयार! फिर मेरी सब गलत बातें मानने को तैयार! फिर मैं तुम्हारी संस्कृति नष्ट नहीं कर दूंगा? फिर तुम्हारी सभ्यता का क्या होगा, तुम्हारे धर्म का क्या होगा? कच्छ को डुबा रहा हूं, तुमको भी डूबा दूंगा! तुम कैसे बचोगे मेरे शिष्य हो कर? गौ बच जाएगी मान लो, मगर तुम कैसे बचोगे? यह जरा सोचो। इस तरह के व्यर्थ के लोग हमारी छाती पर सवार हैं। और पांचवी बात उन्होंने कही कि अब भगवान रजनीश अच्छे ढंग से बोल रहे हैं। पहले जैसे नहीं रहे हैं, कुछ सुधर गए हैं! बिलकुल गलत! मैं और बिगड़ रहा हूं। सुधरने का सवाल ही नहीं उठता। मुझे जैसे-जैसे अनुभव होता जा रहा है इन सारे नासमझों का, उतनी-उतनी मैं धार रख रहा हूं। इनकी गर्दनें काटनी हैं। मैं चोट और गहरी कर रहा हूं। मेरी चोट रोज गहरी होती जाएगी। इस गलती में न रहे कोई। मगर यह फिर वे मेरे शिष्यों को समझा रहे हैं। अब यह बड़े मजे की बात है कि एक तरफ कहते हैं मुझे भगवान रजनीश, और दूसरी तरफ यह भी कहते हैं कि सुधर रहे हैं! भगवान में भी कुछ सुधरने को बचता है? मतलब यह हुआ कि भगवान हो कर भी कुछ सुधरने को रह जाता है शेष! बिगड़ने को ही बचता है, सुधरने को कुछ नहीं बचता। अब भगवान ही हो गए तो अब बिगड़ने का डर भी नहीं रहता। अब तो Page 248 of 255 http://www.oshoworld.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255