Book Title: Jyo tha Tyo Thaharaya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 246
________________ ज्यों था त्यों ठहराया परमात्मा की स्तुति करते हैं; वह चमचागिरी है, और कुछ भी नहीं है--कि हम पापी और तुम महाकरुणावान, कि हम दीन-हीन और तुम दीन-हीनों को बचाने वाले! यह तुम स्तुति कर रहे हो या खुशामद? स्तुति का मतलब भी खुशामद ही होता है। और खुशामद से तुम सोचते हो तुम परमात्मा को प्रसन्न कर लोगे! राजनेताओं को कर लो भला, क्योंकि ये तुम जैसे ही मूढ हैं। इनमें और तुममें कुछ भेद नहीं है। इनको तुम जो कहो खुशामद में, उसको जान लेंगे। निपट भोंदुओं को कहो कि आप जैसा बुद्धिमान कोई भी नहीं है; जिनकी शक्ल देख कर बच्चे डर जाएं, उनको कहो कि अहा, आपका सौंदर्य! नहीं पृथ्वी पर ऐसे कोई सौंदर्य का धनी हुआ कभी! और ये बड़े प्रसन्न होंगे, बड़े आनंदित होंगे। ये तुम्हारी बात स्वीकार कर लेंगे। इसी स्तुति को तुम परमात्मा के लिए कर रहे हो। परमात्मा को भी लोग रिश्वत दे रहे हैं इस देश में। इसलिए तो रिश्वत इस देश से हटाना बहुत मुश्किल है। नारियल चढ़ा आते हैं हनुमान जी को। नारियल क्या है? रिश्वत है--कि बेटा नहीं हो रहा, बेटा पैदा हो जाए, तो एक नारियल और चढ़ाऊंगा; कि पांच आने का प्रसाद बांट दूंगा! कि हे गणेश जी, अगर इस बार लाटरी मेरे नाम खुल जाए, तो पक्का समझो, सत्यनारायण की कथा करवा दूंगा; गणेश उत्सव में गणेश की मूर्ति बनवा दूंगा, कि झांकी सजवा दूंगा! तुमने क्या समझा है परमात्मा को? मगर लोग ऐसे ही मूढ हैं। मेरे गांव में, जब मैं छोटा था, मेरे गांव में मुहर्रम बड़े उत्सव से मनाया जाता है। और हिंदू-मुसलिम दंगा मेरे गांव में कभी हआ नहीं। तो हिंदू-मुसलमान दोनों ही सम्मिलित होते हैं। और मुहर्रम के समय वली उठते हैं, वली की सवारियां उठती हैं। और जो आदमी सवारी ले कर कूदता-फांदता है, उछलता है, उसके सामने लोग मनौतियां मनाते हैं। और जो जितना उछलता-कूदता है, उतना ही बड़ा वली समझा जाता है। मुझे बचपन से ही शक रहा कि यह उछल-कूद सब झूठ है। तो मैं बामुश्किल कोशिश करके एक सवारी की डोर पकड़ने को किसी तरह से मौका पा गया। पीछे ही पड़ा रहा लोगों के, तो उन्होंने कहा कि अच्छा भई, इस छोकरे को रस्सी पकड़ा दो; यह पीछे ही पड़ा है। बड़ा धार्मिक भाव वाला है। मैं साथ में एक सुई भी ले गया था, क्योंकि मैंने सुन रखा था कि जब वली आ जाते हैं, तो फिर उसको पता ही नहीं चलता; गर्दन भी काट दो, तो पता नहीं चलता। तो मैं सुई चुभोऊं कि पता चलता है कि नहीं। और जब मैं सुई चुभोऊं, तो वे और उछलें-कूदें। पता उसे ठीक से चल रहा है कि जब भी सुई चुभाऊं, तब वह और उछले-कूदे, और शोरगुल मचाए! हालत यह हो गई कि मैं जिसकी डोर पकड़ लूं, वह वली सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हो जाए गांव में, उसको ज्यादा चढ़ोतरी चढ़े; और लोग कहने लगे, इस छोकरे में भी कुछ गुण है, जिसकी डोर पकड़ लेता है...। मगर जो वली बनें, वे मेरे हाथ-पैर जोड़ें बाद में कि भैया, तू Page 246 of 255 http://www.oshoworld.com

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