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ज्यों था त्यों ठहराया
होना चाहिए! जैसे एक भिखमंगा कहे कि मैंने राजपाट स त्याग, कर दिया! तुम हंसोगे! तुम कहोगे: राजपाट था कहां? दो अफीमची एक झाड़ के नीचे लेटे थे। पूर्णिमा की रात। और एक अफीमची ने कहा, अहा, क्या प्यारा चांद निकला! करोड़ों रुपए में भी खरीद सकता है! दूसरा अफीमची हंसने लगा। उसने कहा, चुप रह। बकवास न कर! अरे क्या तू खरीदेगा! हिम्मत है तेरी खरीदने की? करोड़ से काम नहीं चलेगा। उसने कहा, दस करोड़ में खरीद सकता हूं। पचास करोड़ में खरीद सकता हूं। एक अरब में खरीद सकता हूं। दूसरे अफीमची ने कहा, बकवास बंद कर। हमें बेचना ही नहीं! तू लाख सिर मारे, जब हम बेचेंगे ही नहीं, तू खरीदेगा कैसे? चांद की खरीद-फरोख्त हो रही है! जैसे इनके बाप का हो! जो है ही नहीं, वह खरीदा जा रहा है! जो है ही नहीं, वह बेचा जा रहा है--जो अपना है ही नहीं...। इनको तुम अफीमची कहते हो। और इसी तरह की पीनक की बातों को तुम वेदांत कहते हो? मैं नहीं कहता। मैं तो मानता हूं, विज्ञान उतना ही सत्य है, जितना धर्म। दुनिया में दो तरह की भ्रांतियां हुईं--एक भ्रांति शंकराचार्य जैसे लोगों ने फैलाई, जिन्होंने कहा--जगत असत्य है और ब्रह्म सत्य है। अर्थ हुआ--विज्ञान असत्य है, धर्म सत्य है। और दूसरी तरह की भ्रांति कार्ल माक्र्स जैसे लोगों ने फैलाई, जिन्होंने कहा, जगत सत्य है, ब्रह्म असत्य है। विज्ञान सत्य है, धर्म अफीम का नशा है। मैं कहता हूं: ये दोनों गलत हैं। और एक मजे की बात है, दोनों एक बात से राजी हैं; दोनों अद्वैतवादी हैं--कार्ल माक्र्स भी और शंकराचार्य भी। क्योंकि दोनों एक में मानते हैं, दो में नहीं मानते। हालांकि उनका एक अलग-अलग है। कार्ल माक्र्स कहता है: जगत सत्य है, और ब्रह्म असत्य है। मगर है अद्वैतवादी, यह खयाल रखना। और शंकराचार्य कहते हैं: ब्रह्म सत्य है, जगत असत्य है। वे भी अद्वैतवादी हैं। मैं कार्ल माक्र्स और शंकराचार्य को एक-सी ही भ्रांतियों का शिकार मानता हूं। मेरी दृष्टि में दोनों ही सत्य हैं और दोनों अलग भी नहीं हैं। मैं भी अद्वैतवादी हूं। लेकिन मैं मानता हूं--एक सिक्के के दो पहलू होते हैं। इससे मैं द्वैतवादी नहीं हो जाता। सिक्का एक है, पहलू दो हैं।
और सिक्का एक पहलू का कोई बनाकर दिखा दे, तो मैं मान लूंगा कि कार्ल माक्र्स भी सच्चा है और शंकराचार्य भी सच्चे हैं। एक पहलू का कोई सिक्का बना कर बता दे। कैसे बनाओगे एक पहलू का सिक्का? सिक्के के दो पहलू होते हैं। प्रकाश नहीं हो सकता है, अगर अंधकार न हो और अंधकार नहीं हो सकता, अगर प्रकाश न हो। पुरुष नहीं हो सकता, अगर स्त्री न हो; स्त्री नहीं हो सकती, अगर पुरुष न हो। जन्म नहीं हो सकता अगर मौत न हो; मौत नहीं हो सकती, अगर जन्म न हो। ये एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
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