Book Title: Jyo tha Tyo Thaharaya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 241
________________ ज्यों था त्यों ठहराया लेकिन जवाब इनमें से कोई भी देने को नहीं हैं। और ये गौ-भक्त हैं! और संसार माया है। तो यह गऊ माया नहीं है? गौ-भक्त चल रही है--और संसार माया है! सिर्फ गौ को छोड़ कर, बाकी संसार माया है? दूसरा शंभू महाराज ने कहा कि रजनीश जी की इंदिरा गांधी तक बड़ी पहंच है। अगर रजनीश जी उनको कह कर गौ-हत्या बंद करवा दें, तो मैं उनका शिष्य हो जाऊंगा। मेरी किसी तक कोई पहुंच नहीं है। मैं अपने कमरे के बाहर नहीं निकलता, पहुंच हो कैसे सकती है? और अगर मेरी पहुंच हो भी, तो मैं इस तरह की मूर्खतापूर्ण बातों में पड़ता नहीं कि गौ-हत्या बंद करवा दो; कि शराब बंद करवा दो! ये सब बेवकूफी की बातें हैं। ये सब देहाती-बुद्धि ही बातें हैं। जरूर गौ-रक्षा होनी चाहिए। मगर गौ-रक्षा और गौ-हत्या बंद करवाना दो अलग बातें हैं। सच तो यह है--अगर गौ-हत्या जारी रहे, तो ही गौ-रक्षा हो सकती है। तुम चौंकोगे थोड़ा और शंभू महाराज तो बहुत तिलमिला जाएंगे। मगर मैं भी क्या करूं, मुझे जैसा दिखाई पड़ता है, वही कहूंगा। मैं रत्ती भर अन्यथा नहीं कह सकता--बुरा लगे भला लगे। गौ-रक्षा हो सकती है, अगर गौ-हत्या जारी रहे। अगर गौ-हत्या बंद हुई, तो गौ-रक्षा नहीं हो सकती। और मेरी बात गणित की तरह साफ है। दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं है, जहां गऊओं की इतनी दुर्दशा हो, जितनी भारत में है। क्यों? वहां कहीं गौ-हत्या बंद नहीं हुई है, मगर गौरक्षा हो रही है। यहां की चालीस गायें उतना दूध नहीं देतीं, जितना स्वीडन की एक गाय दूध देती है। यह गौ-रक्षा है! भारत में आदमियों को खाने के लिए तो भोजन नहीं है, तुम गऊओं को बचा-बचा कर करोगे क्या? भूखा मारोगे, और क्या करोगे? भूखा मार रहे हो! हड्डी-हड्डी हो रही हैं भारत की गायें। भूखी मर रही हैं। तुम भूखे हो, तो तुम्हारी गायों को कौन भोजन देने वाला है? आदमी को नहीं मिल रहा खाने को, घास नहीं मिल रही आदमी को खाने को, गऊओं को कौन खिलाएगा; कैसे खिलाएगा? भारत के पास जितने पशु हैं, गायें-भैंसें, उतने दुनिया के किसी देश के पास नहीं हैं। आदमियों से ज्यादा संख्या हुई जा रही है! मगर उनको खिलाओगे-विलाओगे कैसे? बचाते जाओ, तो बस हड्डी-हड्डी होंगी। उनको जबर्दस्ती जिला कर रखना है, सड़ाना है, मारना है? इससे ज्यादा दयापूर्ण होगा कि जो गाय, जितनी गाएं तुम बचा सकते हो, उतनी गायें तुम बचाओ। उनको स्वास्थ्य दो। उनको ठीक सम्यक भोजन दो। उनकी ठीक चिकित्सा की व्यवस्था करो। गौ-रक्षा अगर करनी है, तो गौ-हत्या नहीं रोकी जा सकती। मजबूरी है। अभी तो नहीं रोकी जा सकती। अभी तो आदमी की हत्या के दिन करीब आ गए। आदमी इतना हुआ जा रहा है, इतनी संख्या बढ़ी जा रही है कि हमको बच्चे रोकने पड़ रहे हैं। संतति-निरोध--वह हत्या ही है। उसको तुम हत्या न कहो, संतति-निरोध कहो, अच्छे शब्द में छिपाओ, मगर है तो Page 241 of 255 http://www.oshoworld.com

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