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ज्यों था त्यों ठहराया
यह भी हत्या है गर्भपात के वह भी हत्या है।
हत्या ही भ्रूण हत्या है बच्चा मां के पेट में नहीं आने देंगे, लिए हमें कानूनी व्यवस्था करनी ही पड़ेगी करनी पड़ रही है हमें बूढ़ों को आज नहीं कल मरने की स्वतंत्रता देनी ही पड़ेगी। वह भी हत्या है। लेकिन मजबूरी है, कोई और उपाय नहीं है। और मजबूरी के लिए जिम्मेवार शंकराचार्य हैं और ये शंभू महाराज जैसे लोग हैं। नहीं तो इतनी मजबूरी की कोई जरूरत न थी ।
हमने भी अगर विज्ञान के जगत में थोड़ी गति की होती, अगर हमने भी उत्पादन के ज्यादा वैज्ञानिक ढंग खोजे होते, अगर हमने भी उद्योग में नए-नए तकनीक ईजाद किए होते, तो यह हालत न आती। हम सिर्फ बच्चे पैदा करते हैं, और हमसे कुछ भी नहीं होता और संसार माया है। बड़ा मजेदार काम चल रहा है। बच्चे पैदा करने भर में माया नहीं है! मैंने कल तुमसे कहा कि चंदूलाल ने अपने गुरु स्वामी मटकानाथ ब्रह्मचारी को अपनी पत्नी के साथ रासलीला करते हुए पकड़ लिया, तो बड़े गुस्से में आ गया चंदूलाल स्वाभाविक है। पत्नी को तो उसने कहा कि मैं तेरी हत्या ही कर दूंगा, तलाक तो निश्चित है। और ब्रह्मचारी को, जो उसके गुरु थे, उनको कहा कि अरे ब्रह्मचारी के बच्चे, अरे लंगोट के कच्चे ! अरे उल्ले के पट्ठे! कम से कम जब मैं अपनी पत्नी से बात कर रहा हूं, तब तो तू छेड़छाड़ बंद कर दे! उठ, अपने तीन कपड़े पहन !
ब्रह्मचारी को तीन कपड़े रखने की सुविधा है। वे तीनों टेबिल पर रखे हैं। और ब्रह्मचारी ने क्या कहा? ब्रह्मचारी ने कहा, वत्स, क्यों नाराज हो रहा है? अरे यह जगत तो माया है! सब सपना है- कह गए शंकराचार्य क्यों भ्रम में पड़ रहा है? क्यों सपने में उलझ रहा है, अरे, क्या माया मोह में उलझा है?
ये तुम्हारे तथाकथित साधु-संत-महात्मा, इनके बड़े अजीब काम हैं। एक तरफ जगत को माया कहेंगे, दूसरी तरफ जगत को छोड़ो इसका उपदेश देंगे जो है ही नहीं, उसको छोड़ना क्या? एक तरफ कहेंगे कि धन माया है, और दूसरी तरफ कहेंगे कि दान धर्म है। बड़े मजे की बातें हैं। कुछ गणित होता, कोई तर्क होता, कोई हिसाब होता, कोई बुद्धि की बात होती! धन माया है झूठ है - और धन का दान? स्वर्ग में उसका फल मिलेगा। झूठ का दान करोगे? जो है ही नहीं उसका दान करोगे? ईश्वर तक को धोखा दोगे! और फिर स्वर्ग में उसका करोड़ गुना फल पाओगे यह ही महात्मा समझा रहे हैं। क्या मजा चल रहा है! असत्य को त्याग कर दिया और एक करोड़ गुना फायदा! यह तो कुछ लाटरी जैसा मामला हुआ ! लाटरी में भी कम से कम असली दाम लगाना पड़ता है। यह तो लाटरी से भी बढ़िया लाटरी हुई। कुछ लगाना ही नहीं पड़ा। हल्दी लगे न फिटकरी रंग चोखा हो जाए !
और परमात्मा के दरवाजे पर दानियों की बड़ी इज्जत होती है। और दान भी किसको देना ! ब्राह्मण समझाता है, ब्राह्मण को देना। क्योंकि ब्राह्मण को दान देने का लाभ बहुत है। और जैन क्या समझाता है? जैन समझाता है, जैन मुनि को देना; ब्राह्मण को नहीं, जैन मुनि को देने का बड़ा लाभ है और बौद्ध क्या समझाता है, कि बौद्ध भिक्षु को देना जैन मुनि को
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