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ज्यों था त्यों ठहराया
सब दबा के चल दिए, न कोई दुआ न सलाम! क्या हो गया जमाने को! जरा सी देर में क्या हो गया जमाने को! लौट कर भी कोई नहीं देखता। कैसा सिला दिया! जिंदगी भर की मुहब्बत का सिला देने लगे! यह कभी भी होगा। यह अभी हो सकता है। आज हो सकता है। इसके पहले कि यह हो-- भीतर के चैतन्य को पहचान लो। इसके पहले कि मौत आए, अपने भीतर के अमृत को जान लो, ताकि मरो, तो भी तुम्हारे भीतर नृत्य रहे; मरो, तो भी तुम्हारे भीतर आनंद रहे। मरो, तो भी जानते हुए कि मैं नहीं मर रहा हूं। जो मर रहा है, वह मैं नहीं हूं। देह मरती है, मैं नहीं मरता हूं। जब तक इस अमृतत्तत्व को कोई नहीं जान लेता, तब तक जीवन में न कोई रस है, न कोई आनंद है, न कोई उत्सव है।
दूसरा प्रश्न: भगवान, आपका और हमारे संभावित कच्छ के आश्रम का विरोध करने वाले श्री शंभू महाराज को दिनांक ३१-८-८० के रोज बीस-पच्चीस संन्यासी और संन्यासिनियों के साथ हम मिलने गए। बड़ौदा में उनकी भागवत सप्ताह थी। उस मौके पर मिलने का आयोजन किया। बहुत-सी बातें हुई, जिनमें निम्न बातें खास रहीं। श्री शंभू महाराज ने बताया: पहला--भगवान रजनीश का विरोध करने का कारण, मेरे गुरु शंकराचार्य के खिलाफ बोलते हैं, इसलिए करता हूं। मैं जो बोला हूं, उसका खंडन करो, उसको जवाब दो। मेरे कच्छ आने का विरोध करने से उसका कोई जवाब होगा? मैं कच्छ आऊं या न आऊं, मैंने जो शंकराचार्य के संबंध में कहा है, उसका जवाब ऐसे दिया जाएगा? मैंने कहा क्या है शंकराचार्य के विरोध में! स्मृति के लिए--शंभू महाराज की--दोहरा देता हूं। मैंने यही कहा है कि शंकराचार्य के इस कथन से मैं राजी नहीं हूं कि ब्रह्म सत्य है और जगत मिथ्या है। और तो मैंने कुछ भी नहीं कहा। सिद्ध करो कि जगत मिथ्या है। मेरा कच्छ आने का विरोध करते हो, इससे तो सिद्ध होता है--जगत सत्य है। कच्छ सत्य है? और जगत असत्य हो जाएगा? मेरा आना सत्य है! तुम्हारा विरोध सत्य है! तो जगत कैसे असत्य हो जाएगा? जगत असत्य है और ब्रह्म सत्य है--इस बात का मैंने निश्चित विरोध किया है। अब भी विरोध करूंगा, क्योंकि मेरी दृष्टि में यह सूत्र भारत की दरिद्रता, दीनता, हीनता, गुलामी-- सब का आधार है। इस सूत्र को जब तक हम उखाड़ न फेंकेगे, तब तक भारत के जीवन में सौभाग्य का उदय नहीं हो सकता। भारत क्यों विज्ञान को जन्म नहीं दे पाया?--जगत असत्य है--इसलिए। विज्ञान कैसे जन्मे? जब जगत है ही नहीं, तो विज्ञान कैसा? जगत का यथार्थ मानो, तो विज्ञान का जन्म हो सकता है। और भारत में सबसे पहले विज्ञान का जन्म हो सकता था। क्योंकि हम पांच
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