Book Title: Jyo tha Tyo Thaharaya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

View full book text
Previous | Next

Page 230
________________ ज्यों था त्यों ठहराया अमृत प्रिया ! औरों को मत देख औरों को जिसने देखा, वह भटका अपने को जिसने देखा, वह पहुंचा! इतनी ऊर्जा तो अपने को देखने में लगा। क्या प्रयोजन है किसी और को देखने से यह उनकी जिंदगी है। अगर उन्हें उदास ही रहना है, तो कोई लाख उपाय करे, तो भी उन्हें प्रसन्न नहीं कर सकता। अगर उन्होंने यही तय लिया है, अगर दुखी रहना ही उनका निर्णय है, तो उनकी मर्जी उनकी स्वतंत्रता है। ये मालिक हैं अपने । मगर तू क्यों परेशान है! और उनको उदास देख-देख कर तू उदास हो जाएगी। हारे हुए लोगों को देखोगे, पराजित लोगों को देखोगे, तो मन में यह निराशा सघन होने लगेगी कि यही जिंदगी है यही मुझे होने वाला है। बुद्धों को देखो। और बुद्ध न मिलें, तो अपने को देखो। क्योंकि वहां बुद्धत्व छिपा है। वह भी बुद्ध को ही देखना है। बाहर के बुद्ध को देखकर भी भीतर के ही बुद्ध की याद आती है। भीतर के बुद्ध को देख कर बाहर के बुद्धों को समझने की सूझ आती है। ये कुछ अलग-अलग बातें नहीं हैं। जैसे कोई आईने में देखता है, तो अपनी ही तसवीर दिखाई पड़ती है। ऐसे ही बुद्धों में जब कोई झांकता है, तो अपने को ही पाता है। तू कहती है: इस जहां में तू कैसे बेपीए मदहोश रहता है! भीतर की एक मस्ती है, उसके लिए पीना नहीं पड़ता। भीतर भी छनती है। कल ही किसी ने पूछा था कि भगवान, क्या आप रोज सुबह भांग छान लेते हैं। आपकी बातें बड़ी प्यारी लगती है। भांग छानने की जरूरत नहीं; भगवान छान लेता हूं। भांग क्या पीनी, जब भगवान को पीयो। फिर अंगूर की ढली क्या पीनी--जब आत्मा की ढली पीना आ जाए। सुबह ही नहीं छानता, हर पल छानता हूं। जाग कर छानता हूं, सो कर छानता हूं। छानता ही रहता हूं। एक ऐसा भी रस है, जो भीतर मौजूद है। जरा तलाश करना है। उस रस को ही हमने परमात्मा कहा है. रसो वै सः वह भीतर का जो अमृत है, उसको पीयो तो तू भी ऐसी ही हो जाए। तुझे पूछना न पड़े क इस जहां में तू कैसे बेपीए मदहोश रहता है? ऐ साकी! आज तक देखा न तुझ सा आदमी मैंने ।। बता तू कौन है इंसान या कोई फरिश्ता है? या देखा है खुदा को ख्वाब में बना आदमी मैंने ।। नहीं, कुछ भी नहीं। सिर्फ दर्पण में तुमने अपनी तसवीर देखी। मैं दर्पण हूं-- इससे ज्यादा कुछ भी नहीं। मैं तुम्हें तुम्हारा चेहरा दिखा हूं, पूरा हो गया है। अब जितनी देर लेकिन दर्पण में जब तुम चेहरा Page 230 of 255 तो काम पूरा हो गया। मैंने अपना देख लिया। मेरा काम यहां हूं, जिनको भी अपना चेहरा देखना हो, वे देख लें। देखते हो, तो दर्पण में अपनी तलाश करने नहीं निकल http://www.oshoworld.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255