Book Title: Jyo tha Tyo Thaharaya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 233
________________ ज्यों था त्यों ठहराया उसने सारे बेटों से कहा कि बेटा, मौत मेरे द्वार पर खड़ी है। यह है मौका परीक्षा का। आज देखू कि कौन मुझे प्रेम करता है। तुम कहते तो बहुत थे कि पिताजी, तुम्हारे लिए हम मर सकते हैं। आज समय आ गया। देखें, कौन चुनौती स्वीकार करता है! मौत कहती है कि मैं जी सकता हूं सौ साल और। तुम में से कोई जाने को राजी हो, हाथ उठा दे। सब एक दूसरे की तरफ देखने लगे! कौन जाने को राजी! ये बातें करने की हैं। पति पत्नियों से कहते हैं कि मर जाऊंगा तेरे बिना। पत्नियां पतियों से कहती हैं, मर जाऊंगी तुम्हारे बिना! प्रेमी प्रेयसियों से कहते हैं कि मर जाऊंगा। जी न सकूँगा। एक पल न जी सकूँगा! ये सब बातें हैं। न कोई मरता है, न कुछ होता है! यह आदमी जो इस स्त्री से कह रहा है कि तेरे बिना मर जाऊंगा, न मालूम कितनी स्त्रियों से कह चुका है! और अभी तक मरा नहीं। असल में यह इसकी आदत ही हो गई। यह इसकी शैली ही हो गई। बेटे इधर-उधर देखने लगे। सिर्फ एक बेटा जिसकी उम्र अभी केवल सोलह ही वर्ष थी, खड़ा हो गया। उसने कहा, मैं तैयार हूं। मौत को तो बहुत दया आ गई उस बेटे पर। सोचा कि भोला-भाला है। अभी छोरा ही है। इसे कुछ अनुभव नहीं है। अनुभवी जो हैं, वे तो इधर-उधर देख रहे हैं कि कौन जाता है, देखें! एक दूसरे की तरफ देख रहे हैं कि तुम बड़ी ऊंची बातें करते थे, अब देखें! एक दूसरे की तरफ देख रहे हैं कि उठो भाई, हाथ उठाओ। कहते तो तुम यह थे; कहते तो तुम ऐसा थे। बड़े चरण छूते थे। बड़ी पूजा करते थे? अब मौका आ गया। अब दिखा दो अपनी मर्दानगी; अपना जोश-खरोश! यह अवसर न चूको। कोई अपनी तरफ नहीं देख रहा था! यह बेटा उठ कर खड़ा हो गया। इसने कहा, मैं राजी हूं! मौत ने कहा, सुन नासमझ! तेरे और कोई निन्यानबे भाई राजी नहीं हैं। तू क्यों राजी हो रहा है? पूछ पहले इन दूसरे भाइयों से, ये क्यों राजी नहीं हैं। तो उनमें से एक बूढे भाई ने कहा, जब हमारे पिता राजी नहीं हैं, सौ साल हो गए उनको, मेरी तो अभी उम्र केवल सत्तर ही साल है! जब वे सौ साल में जाने को राजी नहीं हैं, तो मैं सत्तर साल में कैसे राजी हो जाऊं! अभी मेरी कौन-सी इच्छाएं पूरी हो गईं! उनकी सौ में नहीं हुईं, तो मेरी सत्तर में कैसे हो जाएंगी! मैं भी अधूरा हूं। मेरी भी तृष्णा खाली है। मेरा भी भिक्षापात्र अभी भरा नहीं। मेरा भी मन अभी जाने को राजी नहीं। जब उनका नहीं, तो मेरा कैसे हो? सभी भाइयों ने इसमें सहमति भरी कि बात ठीक है। हमारा कैसे हो! हम भी अपनी इच्छाएं पूरी करना चाहते हैं। हम आदमी अपनी इच्छाएं पूरी करना चाहता है। और जब पिता को इतनी दया नहीं है, अपने बेटों की बलि चढ़ाने को राजी हैं, तो हमको किसलिए दया हो! अपना-अपना स्वार्थ। वे अपना देख रहे हैं, हम अपना देख रहे हैं। यह मामला स्वार्थ का है; पिता-पुत्र का है ही नहीं। इसमें पिता-पुत्र का संबंध कहां आता है! Page 233 of 255 http://www.oshoworld.com

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