Book Title: Jyo tha Tyo Thaharaya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 231
________________ ज्यों था त्यों ठहराया जाते। और दर्पण को छाती से भी नहीं लगा लेते। और दर्पण को लिए भी नहीं फिरने लगते हो। दर्पण में चेहरा देख लिया; पहचान अपनी हुई; दर्पण से कुछ लेना-देना नहीं है। सदगुरु को दर्पण ही समझो। न उसको पकड़ना है, न उसका अनुकरण करना है। न उसके रंग-रूप में ढलना है। बस, अपना चेहरा देखो। और अपने चेहरे की पहचान आ जाए, तो भीतर उतरो। खोजो वहां। जो दिखाई पड़ा था सदगुरु में, उसको खोजो भीतर। सदगुरु की नकल मत करा। यही भूल हो गई। ईसाई हैं दुनिया में, मगर ईसा कहां? बौद्ध हैं दुनिया में, मगर बुद्ध कहां? जैन हैं दुनिया में, जिन कहां? क्या हो गया? कहां चूक हुई? कहां पैर गलत पड़ गए? इतने ईसाई और एक भी ईसा नहीं! और जिस दिन एक भी ईसाई न था, उस दिन ईसा था। इतने बौद्ध हैं और एक भी बुद्ध नहीं; मामला क्या है? लोग नकल में पड़ गए। लोगों ने दर्पण में तो देखा, फिर दर्पण में ही खोजने लगे। देखा था अपने को; खोजना था भीतर; लौटना था अपने पर। मुल्ला नसरुद्दीन एक रात बहुत पी लिया। घर आया। पीया हुआ आदमी घर लौटता है, तो पत्नी से डरता है। यूं तो बिना पीए भी डरता है, मगर पी कर तो बहुत ही डरता है। ऐसे जब तक दरवाजे तक नहीं आया था, बड़ा डोल कर चल रहा था। पत्नियों को देखते ही नशा तक उतर जाता है! दरवाजे को जैसे ही खटखटाया, याद आई कि अब पत्नी दुरुस्त करेगी। रात के तीन बज रहे हैं। लेकिन सौभाग्य कि बेटे ने उठ कर दरवाजा खोल दिया। धन्यवाद दिया परमात्मा को। दरवाजा बंद करके आहिस्ता से अंदर गया। लेकिन रास्ते में कोई जगह गिरा था। याद आया। कहीं कोई खरोंच लग गई हो चेहरे पर; कोई लहू वगैरह निकल आया हो। घंटों नाली में पड़ा रहा था। वह तो एक कुत्ते ने कृपा की कि जीवन-जल छिड़क दिया उस पर, सो थोड़ा उसे होश आया। तब घर की तरफ चल पड़ा। सोचा कि दर्पण में देख लूं। नहीं तो सुबह पत्नी देखते ही से कहेगी कि खरोंच कैसे लगी? यह चोट कहां आई? तो जा कर दर्पण में देखा। कई जगह चेहरे पर खरोंच थी। चोट थी। तो सोचा कि मलहम पट्टी लगा लूं। तो मलहम पट्टी लगा ली। मलहम पट्टी लगा कर बड़ा निश्चिंत सो रहा। सुबह पत्नी उठी। स्नानगृह में गई और वहां से एकदम चिल्लाती हुई आई। झकझोर कर मुल्ला को उठाया कि तुमने पूरा आईना खराब किया है! मुल्ला ने कहा, क्या हुआ? उसने कहा, चलो भीतर। आईने पर उसने जगह-जगह मलहम लगा रखी थी। पट्टी चिपका दी थी। क्योंकि बेचारे को बेहोशी में अपना चेहरा आईने में दिखाई पड़ा था। तो जहां-जहां खरोंच थी, वहां-वहां उसने बेलाडोना चिपका दिया होगा। मलहम लगा दी होगी। तुमने सारा आईना खराब किया। तुम रात पी कर आए थे। Page 231 of 255 http://www.oshoworld.com

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