Book Title: Jyo tha Tyo Thaharaya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 234
________________ ज्यों था त्यों ठहराया तो मौत ने कहा, सुन अपने भाइयों की बात। तू तो अभी सोलह साल का है। तूने तो कुछ भी नहीं देखा। जिंदगी का क ख ग भी नहीं देखा। वापस ले ले अपना वचन! लेकिन वह बेटा हंसने लगा। उसने कहा, मैं इसीलिए तो राजी हूं कि मेरे भाई--कोई सत्तर के हैं, कोई पचहत्तर के हैं, कोई अस्सी तक के हैं--इनको जिंदगी में कुछ नहीं मिला; मेरे पिता सौ साल के हैं, इनको जिंदगी में कुछ नहीं मिला। ये सौ आदमी मेरे सामने मौजूद हैं। निन्यानबे मेरे भाई, सौवां मेरा पिता--इनको जिंदगी भर जी कर कुछ नहीं मिला, तो मैं इस नाहक जिंदगी में किसलिए जीऊं! मुझे क्या खाक मिल जाएगा। इन सब को देखकर ही तो मैं राजी हो गया कि मुझे ले चलो। क्या सार है इस अजिंदगी में! फिर भी उस बूढे ययाति को बोध न आया। अकसर ऐसा हो जाता है कि छोटे बच्चे बूढों से ज्यादा स्पष्ट होते हैं, साफ होते हैं, स्वच्छ होते हैं। उनकी दृष्टि अभी ताजी होती है। उनकी दृष्टि पर अभी धूल नहीं जमी होती अनुभव की। उसने जिद्द की तो मौत उसे ले गई। सौ साल बाद मौत फिर आई। सौ साल कब गुजर गए-- पता नहीं चला! और ययाति फिर गिड़गिड़ाने लगा। इस सौ साल में उसने फिर शादियां कर ली थीं। पुराने बेटे तो मर चुके थे। पुरानी पत्नियां मर चुकी थीं। नए बेटे थे, नई पत्नियां थीं। फिर वही सवाल उठा। फिर एक बेटे को मौत ले गई। ऐसी कहानी कहती है कि हजार साल तक ययाति जिंदा रहा। मौत आती रही और हर बार वह सौ साल और मांगता रहा। जब हजारवें साल मौत आई, तो उसने कहा, अब बहुत हो चुका। अब और तो नहीं मांगोगे? ययाति ने कहा, नहीं, मैं मांगने वाला भी नहीं था। इतना ही कह जाना चाहता हूं उन मनुष्यों के लिए, जो मेरे पीछे आएंगे--कि सौ साल जीयो कि हजार साल जीयो, कुछ हाथ नहीं लगता। हाथ खाली के खाली रह जाते हैं। बाहर की दौड़ से कभी किसी के हाथ नहीं भरे। फिर चाहे धन के लिए दौड़ो, चाहे पद के लिए, चाहे परमात्मा के लिए! और जो भीतर गया है, एकदम भर गया है। पूछो बुद्धों से, पूछो जाग्रत पुरुषों से! जो भीतर गया मालिक हो गया। जो बाहर रहा--भिखमंगा रहा। हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले। बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।। निकलना खुल्द से आदम का सुतने आए थे लेकिन। बहुत बेआबरू होकर तेरे कूच से हम निकले।। मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का। उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले।। खुदा के वास्ते पर्दा न काबे का उठा जालिम। कहीं ऐसा न हो यहां भी वही काफिर सनम निकले।। कहां मयखाने का दरवाजा और कहां वाइज। Page 234 of 255 http://www.oshoworld.com

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