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ज्यों था त्यों ठहराया
निकल जाएंगे। स्वर्ग में पहले गधे-घोड़े प्रवेश करेंगे; फिर कहीं लग जाए मौका लटपटानंद को, तो लग जाए; क्योंकि वे तीन कपड़े तो पकड़े ही होंगे! और लंगोट तो कस कर बांधा ही होगा उन्होंने! तुम्हें मेरी बातें विचित्र लग सकती हैं, क्योंकि मेरी बातें सत्य हैं और सत्य सदा विचित्र लगता है। अब क्या पागलपन की बात है कि वे तुम से कहते थे कि हर स्त्री को अपनी मां-बहन-बेटी की तरह देखो! मां का क्या मतलब होता है? मां का मतलब होता है--तुम्हारे पिता की पत्नी! हर स्त्री को अपने पिता की पत्नी समझोगे, कुछ पिता का भी विचार करो! पिता को नर्क भिजवाना है! बेटी का क्या मतलब होता है? बिना पत्नी के बेटी कहां से लाओगे? और जब सभी स्त्रियां तुम्हारी बेटियां होंगी, तो कोई चमत्कार करना पड़ेगा, तब बेटी पैदा होगी। बेटी, कि मां, कि बहन--सब कामवासना के ही रिश्ते हैं। मां भी कामवासना का ही रिश्ता है; तुम्हारे पिता की पत्नी है वह। तुमसे उससे पैदा हुए हो। कामवासना से ही पैदा हुए हो।
और बहन से भी कामवासना का ही रिश्ता है। तुम एक ही गर्भ से आए हो; एक ही कामवासना के स्रोत से आए हो। और क्या रिश्ता है?
और बेटी का क्या मतलब?--कि तुम्हारी कामवासना से जो पैदा होगी। सिर्फ पत्नी को छोड़कर बाकी सबको बचा लिया। और बिना पत्नी के तीनों नहीं हो सकते। यह मजा देखो! यह जरा मूढता देखो! पत्नी से ही मां होती सकती है। और पत्नी से ही बेटी हो सकती है। उसी और पत्नी के ही होने से बहन हो सकती है। उसी पत्नी को छोड़ दिया और बाकी तीनों बचा लिए! वृक्ष तो काट दिया, पत्ते बचा लिए, फूल बचा लिए, फल बचा लिए! इनमें प्राण न रह जाएंगे। और जिस व्यक्ति को साक्षी-भाव है, वह क्यों ऐसा सोचे कि कोई बहन है, कोई मां है, कोई बेटी है; स्त्री स्त्री है; न पत्नी, न बहन, न मां, न बेटी। ये नो ही क्यों बांधने? इन नातों से मुक्त होना है--कि ये नाते बनाने हैं! सिर्फ पत्नी भर से भय है इन तथाकथित ब्रह्मचारियों को। और किसी से भय नहीं है। उस पत्नी से बचने के लिए क्या-क्या तरकीबें निकालते हैं! मैंने सुना है: चंदूलाल...रास्ते पर भीड़भाड़ थी। सरकस की तरफ लोग जा रहे थे। सरकस का पहला शो छूटा था। दूसरा शुरू होने का था। तो बड़ी भीड़मभक्का थी। एक सुंदर स्त्री को देख कर संयम न साध सके। लंगोट ढीला हो गया! कुछ ज्यादा नहीं किया, एक च्यूटी ले दी। अब च्यूंटी ऐसा कोई बहुत बड़ा पाप नहीं है। मगर स्त्री ने चीख-पुकार मचा दी एकदम; हालांकि स्त्री भी वहां गई ही इसलिए होगी कि कोई च्यूटी ले दे। क्योंकि सजी-बजी...ऐसी सजी-बजी कि कोई च्यूटी न ले, तो दुखी लौटे घर। कोई धक्का न मारे, तो सोचे कि अब मैं सुंदर नहीं दिखाई पड़ती! तो मेरा सारा साज-सिंगार व्यर्थ गया!
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