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ज्यों था त्यों ठहराया
इसकी यह हालत हो गई। तब से यह सींखचों से सिर मारता है! दीवालों से सिर फोड़ता है। यह आत्महत्या करने को उतारू है। यह आत्महत्या न कर ले, इसलिए इसको पागलखाने में रखना पड़ा है। किसको बेचारा कहोगे? वह, जिसको नहीं मिली स्त्री--वह। या जिसको मिल गई--वह? किसके जीवन में रस है? तुम जरा उनको तो देखो, जिसको उनकी प्रेयसियां मिल गई हैं। उनके प्रेमी मिल गए हैं। उन पर तो जरा नजर डालो। वहां कहां रस है? ऊबे बैठे हैं। जब भी तुम किसी जोड़े को उदास देखो, समझना--विवाहित हैं। जब भी तुम किसी स्त्री-पुरुष को लड़ते देखो, समझो विवाहित हैं। एक-दूसरे की गर्दन को दबाते देखो--समझो कि विवाहित हैं! जरा देखो तो चारों तरफ आंख खोल कर। तुम मुझसे कुछ रहे हो, अब मैं जी तो रहा हूं, किंतु जीने का कोई रस न रहा। इतने जल्दी गंवा दोगे जीवन का रस! जीवन कुछ और बड़े काम के लिए है। जीवन कुछ और विराट आकाश को पाने के लिए है। अभी और भी मंजिलें हैं। अभी और भी आसमान हैं। दिल के सहरा में कोई आस का जुगनू भी नहीं। इतना रोया हूं कि अब आंख में आंसू भी नहीं।। कासाए-दर्द लिए फिरती है गुलशन की हवा। मेरे दामन में तिरे प्यार की खुशबू भी नहीं।। छिन गया मेरी निगाहों से भी एहसासे-जमाल। तेरी तस्वीर में पहला सा वो जादू भी नहीं।। मौज-दर-मौज तेरे गम की शफक खिलती है। मुझे इस सिलसिलाए-रंग पे काबू भी नहीं।। दिल वो कमबख्त कि धड़के ही चला जाता है। ये अलग बात कि तू जीनते पहलू भी नहीं।। ये अजब राहगुजर है कि चट्टानें तो बहुत। और सहारे को तेरी याद के बाजू भी नहीं।। जल्दी ही भूल जाओगे। फिर उलझोगे और भूल जाओगे। अभी लगता है कि दिल के सहारा में कोई आस का जुगनू भी नहीं। इतना रोया हूं कि अब आंख में आंसू भी नहीं।। लेकिन यह सब रोना-धोना, यह आशाओं का बुझ जाना, यह जुगनुओं का भी खो जाना, ज्यादा देर नहीं टिकेगा। आदमी भ्रम पालन में बड़ा कुशल है। जरा रुको। फिर भ्रम पालोगे। एक भरम टूटता नहीं कि दूसरा भरम हम पैदा कर लेते हैं! फिर से रस की धार बहने लगेगी! हालांकि वह रस की धार बिलकुल झूठी है। रसधार तो बहती है सिर्फ उसके जीवन में, जो परमात्मा के प्रेम से भर जाता है। इन छोटे-मोटे प्रेमों में प्रेम नहीं है; आसक्तियां हैं। प्रेम के धोखे हैं। प्रेम केवल शब्द है--प्यारा शब्द। लेकिन शब्द को उघाड़ कर देखो, तो
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