Book Title: Jyo tha Tyo Thaharaya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 219
________________ ज्यों था त्यों ठहराया और दमित चित्त का व्यक्ति आंख बंद कर के योगासन मार कर बैठ जाए, तो भी क्या करेगा! भीतर वही कामवासना की आंधियां और तूफान चलते रहते हैं। असली क्रांति भीतर है - बाहर नहीं। बाहर धोखा है, भीतर क्रांति है। कन्हैयालाल द्विवेदी, अगर जीवन को क्रांति से गुजारना है, अगर है साहस --तो संन्यास | और मैं नहीं कहता कि विवाह मत करना। इसलिए घबड़ाओ मत कि संन्यास लेने से फिर विवाह नहीं कर पाऊंगा यही तो मेरे संन्यास की विशिष्टता है कि तुम्हें संसार से तोड़ता ही नहीं। मैं जोड़ने को हूं--तोड़ने को नहीं । परमात्मा से जोड़ना है। और यह संसार भी परमात्मा का है क्यों इससे टूटना। अहोभाव से जुडो धन्यवाद से जुडो अनुग्रह से जुड़ो। अगर तुम्हें परमात्मा की इस कृति में रस नहीं है, तो क्या खाक परमात्मा में रस होगा ! जब तुम संगीत को प्रेम नहीं करते, तो संगीतज्ञ को कैसे प्रेम करोगे? और नृत्य को प्रेम न नहीं करते, तो नर्तक को कैसे प्रेम करोगे? यह परमात्मा का नृत्य है ये पक्षियों के कंठ से फूटते हुए गीत, ये वृक्षों पर खिले हुए फूल -- ये सब परमात्मा के रंग हैं; ये सब परमात्मा के ढंग है। इनको प्रेम करो। यह व्यक्तियों का सौंदर्य--स्त्रियों का, पुरुषों का सौंदर्य - यह सब परमात्मा की ही अभिव्यक्ति है। इससे भागना नहीं है। हां, इसे जाग कर जीना है। और जागने से सब हो जाता है। -- चौथा प्रश्नः भगवान, मैं एक युवती के प्रेम में था। वह मुझे धोखा दे गई और किसी और की हो गई। अब मैं जी तो रहा हूं, किंतु जीने का कोई रस न रहा। मैं क्या करूं? नगेंद्र ! प्रेम में थे या स्वी पर कब्जा करने की आकांक्षा में थे? क्योंकि तुम्हारी भाषा कहती है कि वह मुझे धोखा दे गई और किसी और की हो गई! प्रेम को इससे क्या फर्क पड़ता है! अगर वह युवती किसी और के साथ ज्यादा सुखी है, तो तुम्हें प्रसन्न होना चाहिए। क्योंकि प्रेम तो यही चाहता है कि जिसे हम प्रेम करते हैं, वह ज्यादा सुखी हो, वह आनंदित हो। अगर वह युवती तुम्हारे बजाय किसी और के पास ज्यादा आनंदित है, तो इसमें रस खो देने का कहां कारण है। मगर हम प्रेम वगैरह नहीं करते। प्रेम के नाम पर हम कुछ और करते हैं--कब्जा -- मालकियत। तुम पति होना चाहते थे। पति यानी स्वामी । और वह किसी और की हो गई ! और मज़ा यह है कि तुम्हें उससे प्रेम था। तुमने अपने प्रश्न में यह तो बताया ही नहीं कि उसे भी तुमसे प्रेम था या नहीं तुम से होता, तो तुम्हारे साथ होती तुम्हें प्रेम था, इससे जरूरी तो नहीं कि उसे भी प्रेम हो प्रेम कोई जबर्दस्ती तो नहीं तुम्हें था, यह तुम्हारी मर्जी । और उसे नहीं था, तो उसकी भी तो आत्मा है, उसकी भी तो स्वतंत्रता है। अब किसी को किसी से प्रेम हो जाए और दूसरे को प्रत्युत्तर देना न हो, तो कोई जबर्दस्ती तो नहीं है। Page 219 of 255 http://www.oshoworld.com

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