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ज्यों था त्यों ठहराया
भी तुम्हें ठीक-ठीक लगे, वह करना। लेकिन तुम अपनी मालकियत से करना, मेरे कहने से नहीं। इसलिए मैं अपने संन्यासी को कोई आचरण नहीं देता हूं, कोई अनुशासन नहीं देता हूं, क्योंकि मैं कौन हूं--किसी के ऊपर अपने को थोपूं! मैं तो सिर्फ बोधमात्र देता हूं--इशारा। इसलिए मेरा संन्यास सिर्फ उनके लिए है, जिनके पास बुद्धिमत्ता है, जिनके पास बोध को जगाने का साहस और क्षमता है। यह कायरों के लिए नहीं है। और कायरों को रोकने के लिए मैंने सारा इंतजाम कर रखा है, कि उनको दरवाजे के बाहर ही रोक दिया जाए। जो सज्जन लुधियाना से आए हैं जैन मित्र, उन्होंने यह भी कहा है कि आपसे मिलने की सब को सुविधा होनी चाहिए। क्यों? क्योंकि सुविधा होनी चाहिए? सिर्फ उसको मिलने की सुविधा होगी, जो इतनी बुद्धिमत्ता प्रदर्शित करे, जो इतना ध्यान प्रदर्शित करे कि मेरे साथ चल सके। हर किसी को क्यों मिलने की सुविधा होनी चाहिए! मेरा समय नष्ट करने की हर किसी को क्यों सुविधा होनी चाहिए! आखिर मैं भी स्वतंत्र हूं। अगर तुम मुझसे मिलने को स्वतंत्र हो, तो मैं भी तो स्वतंत्र हूं कि तुमसे मिलूं या न मिलूं। आखिर मैं अपने जीवन का मालिक हूं। मैं अपनी चेतना का मालिक हूं। मैं उनसे मिलना चाहता हूं, जिनके जीवन में कुछ दिखता है कि हो सकता है। मैं सिर्फ संन्यासियों से मिलना चाहता हूं। हर किसी से नहीं मिलना चाहता। इसलिए तुम यह मत सोचना कि कोई और तुम्हें रोक रहा है मुझसे मिलने से। इस आश्रम में जो भी हो रहा है, वह मेरे इशारे पर हो रहा है। इसलिए इस आश्रम में किसी भी चीज पर तुम यह सोच कर मत बैठ रहना कि कोई दूसरा रोक रहा है तुम्हें मेरे पास आने से। कोई रोकने वाला नहीं है। जिस दिन मैं मिलना चाहूं, उस दिन कोई नहीं रोकेगा। मैं नहीं मिलना चाहता हर किसी से। भीड़भाड़ से मुझे क्या लेना-देना है! मैं कोई राजनेता नहीं हैं कि भीड़भाड़ इकट्ठी करूं। राजनेता तो पैसा खर्च कर के भीड़भाड़ इकट्ठी करते हैं। यहां तो तुम्हें आने के लिए पैसा खर्च करना पड़ता है। मैं भी बीस वर्षों तक हर किसी को आने दे रहा था। फिर मैंने देखा कि यह तो मूढों की जमात है! इस भीड़भाड़ में सिर्फ मेरा समय खराब हो रहा है। मैं उनके काम आ सकता हूं, जिनमें साहस हो। और यह कायरों की जमात इकट्ठी हो जाती है। और इनकी भीड़ में वे मुझ तक पहुंच ही नहीं पाते, जिनको पहुंचना चाहिए था। तो मुझे भीड़ को छांटना पड़ा।
और मेरी अपनी तरकीबें हैं छांटने की। मैं एक सेकेंड में छांट देता हूं। जरा-सी बात से छांट देता हूं। मुझे कोई बहुत उपाय नहीं करना पड़ता। जैनों की मेरे पास भीड़ थी। दो दिन में छांट दी! बस, जैन-धर्म के संबंध में कुछ कह दिया कि वे भाग खड़े हए! गांधीवादियों की भीड़ थी मेरे पास। बस, गांधी के संबंध में कुछ कह
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