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ज्यों था त्यों ठहराया
सारथी ने कहा, इसे कोई बीमारी नहीं है। यह बुढ़ापा है। यह सबको होता है। यह बीमारी नहीं है, यह सहज जीवन का अंतिम चरण है। बुद्ध ने कहा, क्या ऐसी ही झुर्रियां मेरे चेहरे पर पड़ जाएंगी! ऐसी ही शिकन! ऐसा ही कमजोर मैं हो जाऊंगा! आंखें मेरी ऐसी ही धुंधली हो जाएंगी? ऐसे ही बहरा मैं हो जाऊंगा? सारथी ने कहा, मजबूरी है। मगर प्रत्येक को एक दिन इसी तरह हो जाता पड़ता है। सब चीजें आखिर थक जाती है। इंद्रियां थक जाती हैं, टूटने लगती हैं, बिखरने लगती हैं। बुढापे से कौन बच सका है! और तभी एक मुर्दे की लाश निकली और बुद्ध ने पूछा, अब इसे क्या हो गया है? ये किस आदमी को बांध कर लिए जा रहे हैं? सारथी ने कहा, यह बुढ़ापे के बाद की घटना है। यह आदमी मर गया। और तब उसी लाश के पीछे एक संन्यासी-गैरिक वस्त्रों में! बुद्ध ने कहा, यह आदमी गैरिक वस्त्र क्यों पहने हुए है? इसके हाथ में भिक्षा का पात्र क्यों है? इस आदमी की हय शैली क्या
तो पता चला कि यह संन्यासी है। उसने सारे संसार को छोड़ दिया है। क्यों छोड़ दिया है? इसलिए कि जीवन में दुख है, बीमारी है, बुढापा है, मृत्यु है। यह आदमी अमृत की तलाश में चला है। बुद्ध ने कहा, लौटा लो; रथ को वापस लौटा लो। मैं बीमार हो गया। मैं बूढा हो गया। मैं मर गया--यूं समझो। मुझे भी सत्य की तलाश करनी होगी। वे महोत्सव में भाग लेने नहीं गए। लौट आए। और उसी रात उन्होंने गृह-त्याग कर दिया। ये चार सत्य तुम्हें रोज दिखाई पड़ते हैं--बीमार भी दिखाई पड़ता है, तुम भी बीमार पड़ते हो। बूढा भी दिखाई पड़ता है, तुम भी बूढे हो रहे हो। रोज हो रहे हो। प्रतिपल हो रहे हो। जिसको तुम जन्मदिन कहते हो, वह जन्मदिन थोड़े ही है; मौत और करीब आ गई! उसको जन्मदिन कह रहे हो! लोग जन्मदिन मनाते हैं। लेकिन मौत करीब आ रही है। एक साल और बीत गया। एक बरस और बीत गया। जिंदगी और छोटी हो गई। तुम सोचते हो, जिंदगी बड़ी हो रही है। जिंदगी छोटी हो रही है। जन्मने के बाद आदमी मरता ही जाता है। पहले ही क्षण से मरना शुरू हो जाता है। यह मरने की प्रक्रिया सत्तर-अस्सी साल लेगी, यह और बात। धीरे-धीरे क्रमशः आदमी मरता जाता है। लेकिन तुम देखकर भी कहां देखते हो। तुम बेहोश हो। इसलिए तुम सुखी हो। बुद्ध बहुत दुखी हो गए। मध्य में आ गए। मूढ न रहे। अभी परम ज्ञान नहीं हुआ है। मगर बीच की हालत आ गई। बहुत दुखी हो गए। तलाश में निकल गए। जब आदमी बहुत दुखी होता है, तभी तलाश में निकलता है। मगर दुख को अनुभव करने के लिए भी बुद्धिमत्ता चाहिए। धन्यभागी हैं वे, जो दुख को अनुभव कर सकते हैं, क्योंकि
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