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ज्यों था त्यों ठहराया
बच्चों को सम्मान दो, अगर चाहते हो कि बच्चे भी तुम्हें सम्मान दें। सम्मान के उत्तर में ही सम्मान मिल सकता है। लेकिन हर मां-बाप बुढ़ापे में दुखी होते हैं कि बच्चे फिक्र नहीं करते! तुमने जिस ढंग से इनकी फिक्र की थी, उसने सब जहर कर दिया उसने बात ही खराब कर दी।
लेकिन मनुष्य जाति जब तक ऐसे ही जीती आई है। इसी गलत रवैये से यह हमारे खूनहड्डी-मांस-मज्जा का हिस्सा हो गया है - यह गलत रवैया ।
और यह कह कर पिंकी की मां ने पिंकी के दोनों हाथ अपनी गर्दन पर रख दिए और कहा,
मेरी गर्दन दबा दे; मार डाल ! यह भी कोई बात हुई ! और कौन इतनी जल्दी मरता है !
संत संन्यासी हो गए, तब मां नहीं मरी कोई मरता है ऐसे मेरे डेढ़ लाख संन्यासी हैं। एक मां नहीं मरी! एक बाप नहीं मरा! और हालांकि सब यही कहते हैं कि मर जाएंगे! ये धमकियां झूठी हैं। इनका कोई मूल्य नहीं है। मगर धमकियों से तुम दबा लोगे, तो यह गलत व्यवहार है, अमानवीय व्यवहार है कौन मरता है! संन्यास की तो बात छोड़ो, अगर बेटी मर भी जाए, कोई मां मरती है? तुमने सुना कभी कि बेटी मर गई, सच तो यह है, मां कहेगी, चलो, क्या करते? चलो, झंझट मिटी झंझट मिटी
और मां ने आत्महत्या कर ली हो बेटी के मरने से ? झंझट छूटी ! कहां खोजते लड़का ? कहां से दहेज लाते ? कहे न ऊपर से, मगर भीतर जानेगी कि चलो, एक
लड़का मर जाए, तो कौन मरता है! मरने से भी कोई नहीं मरता। और इसने प्रश्न ही पूछ लिया, इसमें गर्दन दबाने की बात आ गई! मगर ये धमकियां हैं।
हम छोटे बच्चों को बहुत धमकाते हैं। यह व्यवहार उचित नहीं । यह व्यवहार बिलकुल ही गलत है। यह हिंसा है और स्वभावतः इस हिंसा का उत्तर क्या होगा! लड़की के हृदय में क्या भाव उठेगा तुम्हारे प्रति सम्मान उठेगा ? मां के प्रति आदर का भाव पैदा होगा कि दुश्मनी पैदा होगी ?
सोचो जरा देखो जरा इसका परिणाम क्या होगा? पिंकी समझेगी कि तुम उसे प्रेम करती हो ? समझेगी कि तुम्हारा जरा भी प्रेम नहीं है। धमकी में कहीं प्रेम हो सकता है? भय पैदा हो जाता है मगर हमारे ये तर्क रहे अब तक।
बाबा तुलसीदास कह गए हैं--भय बिनु होय न प्रीतिभय के बिना प्रीति नहीं होती। यह वचन काफी है सिद्ध करने को कि तुलसीदास को कोई जीवन का अनुभव नहीं है। महाकवि थे, लेकिन कोई बुद्धपुरुष नहीं ।
भय से कहीं प्रीति पैदा होती है ? असंभव। यह तो जहर से अमृत पैदा करने की बात हो गई ! भय से तो अप्रीति पैदा होती है, घृणा पैदा होती है जिसको भी तुम भयभीत करोगे, वह तुम्हारे प्रति घृणा से भर जाएगा। कहे, न कहे आज न कहे, तो कल कहेगा। ऐसे नहीं कहे, तो वैसे कहेगा कोई न कोई तरकीब निकालेगा। और नहीं भी तरकीब निकली, तो भी उसके भीतर तो तुम्हारे प्रति घृणा भर जाएगी।
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