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ज्यों था त्यों ठहराया
पिंकी से क्षमा मांगना। यह बात तो गलत है। मगर यही फैलती जाती है। हमारी जिंदगी का तर्क हो गया है। ये बेहोशी में ही करते हैं हम। यह मां ने कुछ जानबूझ कर नहीं किया। यह हमारा हिसाब बैठ गया है कि इस तरह से काम होता है। दबा दो! मगर अपने बच्चों को दबाना, तो फिर किसको तुम प्रेम करोगी? किसको सम्मान दोगी? अब मैं संत के पिता को देखता हूं, उनकी आंखों को देखता हूं। उनकी गीली आंखों को देखता हूं। और मैं जानता हूं कि वे संन्यास में डूब सकते हैं। लेकिन यह पिंकी की मां! जब पिंकी को स्वतंत्रता नहीं दे रही--और पिंकी से कह रही है--मेरी गर्दन दबा दो-तो यह पति
को स्वतंत्रता देगी! असंभव। यह तो बहुत तूफान मचा देगी। बड़ा उपद्रव हो जाएगा। अभी पिंकी तो नई-नई है जगत में, इसलिए पूछ गई। पिता तो बेचारे पूछेगे भी नहीं, कि कौन झंझट मोल ले! अब इतनी गुजार दी है--और गुजार देंगे! अब बहुत हो गई, थोड़ी बची है। मगर ये भय के नाते, नाते नहीं हैं--जंगल हैं। प्रेम भय नहीं देता, अभय देता है। प्रेम कहता है--पूछो। जानो। खोजो। जीयो अपने ढंग से। तुम्हें जो सुंदर और सुखद लगे, हमारा उसमें साथ है। हम पर भरोसा रखो कि हम तुम्हारे पीछे हैं। हम तुम्हें साथ देंगे। तुम्हें अपनी जिंदगी अपने ढंग से बनाने का हक है। हमने अपने ढंग से बनाई जिंदगी; तुम्हें अपने ढंग से बनाने का हक है। किसी बच्चे पर आरोपण न करो। यह दुनिया बड़ी सुंदर हो सकती है। इसमें बहुत फूल खिल सकते हैं। इसमें हर बच्चा बुद्धत्व को उपलब्ध हो सकता है। हर बच्चा इतनी क्षमता लेकर पैदा होता है। लेकिन हम उसकी क्षमता को काटते जाते हैं। और कैसे-कैसे ढंग से काटते हैं! अब पिंकी को हमने अपराध भाव पैदा करवा दिया। अब मां ने उसे इतना डरा दिया कि वह सोचेगी कि यह बात ही पूछ कर उसने पाप किया! नहीं पूछना था। क्यों मां को दुखी कर दिया--और इतना दुखी कि मां आत्महत्या करने को उतारू हो रही है--कि मेरी गर्दन दबा दो! हालांकि यह सब बकवास है। कोई न गर्दन दबाता है। न कोई मरता है। लेकिन बच्चे इतने से डर जाएंगे, घबड़ा जाएंगे। स्वभावतः अपनी मां को कौन मारना चाहता है! और मां को कौन दुखी करना चाहता है! तो इस भय में पिंकी राजी हो जाएगी। तुम जैसा कहोगे, वैसा ही करेगी। लेकिन तुम इसकी जिंदगी भर को विकृत कर दोगी। मैंने सुना है कि एक बहुत बड़ा डाक्टर जिसकी सर्जरी सारे जगत में विख्यात थी, जब पचहत्तर वर्ष का हआ और रिटायर होने लगा, क्योंकि अब उसके हाथ थोड़े-थोड़े कंपने लगे थे। और सर्जन के हाथ नहीं कंपने चाहिए। तो उसके सारे शिष्यों ने...उसके बहुत से विद्यार्थी थे। वे खुद भी बहुत प्रख्यात डाक्टर थे--उन सब ने एक समारोह किया। करीब-करीब अंतर्राष्ट्रीय समारोह था। क्योंकि सारी दुनिया में उसके शिष्य थे। सब इकट्ठे हुए। उन्होंने उत्सव मनाया--नाच-गाना हुआ। शराब बही। भोजन! लेकिन देख कर सब हैरान हए कि वह वृद्ध डाक्टर बड़ा उदास है! उसके एक विद्यार्थी ने पूछा, जो अब खुद बड़ा डाक्टर हो गया था, कि आप इतने उदास क्यों हैं? हम तो समारोह मना रहे हैं आपके सम्मान में। आपका विदा समारोह! और आप उदास?
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