________________
ज्यों था त्यों ठहराया
जर्मनी के प्रसिद्ध कवि हाइन ने लिखा है कि मैं एक दफा जंगल में तीन दिन के लिए भटक गया। गया था शिकार को, रास्ता भूल गया। साथियों से छूट गया। तीन दिन भूखा रहा । और जब तीसरे दिन रात पूर्णिमा का चांद निकला, तो मैं चकित हुआ कि जिस चांद में मुझे हमेशा अपनी प्रेयसी का चेहरा दिखाई पड़ता था, वह बिलकुल दिखाई नहीं पड़ा। मुझे दिखाई पड़ी एक सफेद रोटी आकाश में तैर रही है! चांद में रोटी दिखाई पड़ी! किसी को चांद
तीन दिन से जो भूखा है, उसको चांद
में रोटी दिखाई पड़ी! भूखे को दिखाई पड़ सकती है। एक सफेद रोटी की तरह तैरता हुआ मालूम होगा। अब कहां की सुंदर स्त्री वगैरह ! भूखे आदमी को क्या करना है सुंदर स्त्री से! इसीलिए तो उपवास का इतना प्रभाव बढ़ गया। उपवास तरकीब है वासना को दबाने की जब तुम भूखे रहोगे इक्कीस दिन अगर भूखे रहोगे स्त्री वगैरह सब भूल जाएंगी स्त्री को देखने के लिए स्वस्थ शरीर चाहिए। पुरुष को देखने के लिए स्वस्थ शरीर चाहिए।
--
यह तरकीब हाथ में लग गई धार्मिकों के, कि अपने को बिलकुल भूखा रखो, अपनी ऊर्जा को क्षीण कर लो - इतनी क्षीण कर लो कि बस, जीने योग्य रह जाए। जरा भी ज्यादा न हो पाए। जरा ज्यादा हुई कि तो फिर खतरा है। फिर वासना उभर सकती है। मगर इससे कोई वासना से मुक्त नहीं होता। यह सिर्फ दमन है। यह भयंकर दमन है।
उपवास तरकीब है दमन की। भूखा आदमी भूल ही जाएगा। भूखे को सिर्फ रोटी दिखाई पड़ती
--
है और कुछ नहीं दिखाई पड़ता। भरे पेट आदमी को बहुत कुछ दिखाई पड़ने लगता है--जो
भूखे को नहीं दिखाई पड़ता और जब तुम्हारे जीवन की सब जरूरतें पूरी हो जाती हैं, तब
तुम्हें कुछ और दिखाई पड़ना शुरू होता है--जो जरूरतों के रहते नहीं दिखाई पड़ सकता। जरूरतें जब तक हैं, तब तक जरूरतें बीच में आती हैं। इस बात को खयाल में लो सहजानंद ! तुम्हें नाम मैंने दिया सहजानंदा सहज का अर्थ होता है, जो है ही, उसको जानना है। उसे भावित नहीं करना है। उसे कल्पित नहीं करना है। उसके लिए यत्न भी नहीं करना है। सहज है।
धर्म सहज है, क्योंकि धर्म स्वभाव है है ही हमारे भीतर परमात्मा तुम्हारे भीतर विराजमान है। तुम जरा अपने विचार एक तरफ हटा कर रख दो।
तुमसे कहा गया है--विश्वास करो। मैं तुमसे कहता हूं--विश्वास छोड़ो। क्योंकि विश्वास एक विचार है। और विचार अगर सतत करोगे, तो वैसा दिखाई पड़ने लगेगा। मगर वैसा होता
नहीं सिर्फ तुम्हें दिखाई पड़ता है। तुम्हारी भांति है तुम्हारी कल्पना है।
और कल्पना सुंदर हो सकती है, प्यारी हो सकती है, मधुर हो सकती है। तुमने मीठे सपने देखे होंगे। सुस्वादु सपने देखे होंगे लेकिन सपना सपना है जागोगे--टूट जाएगा। सपने देखने के लिए ही लोग जंगलों में भागे; उपवास किया। क्योंकि यह मनोवैज्ञानिक सत्य है आज वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित कि आदमी को अकेला छोड़ दो, तीन सप्ताह में, उसकी कल्पना बहुत प्रखर हो जाती है क्यों? क्योंकि जब दूसरों के साथ रहता है, तो दूसरों की मौजूदगी उसे कल्पनाशील नहीं होने देती। उसे बिठा दो हिमालय की एक गुफा में।
Page 180 of 255
http://www.oshoworld.com