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ज्यों था त्यों ठहराया
हर नफस उम्रे-गुजरता की है, मैयत फानी। जिंदगी नाम है मर-मर के जिए जाने का।। जिंदगी नाम है मर-मर के जिए जाने का! जिंदगी को जानना है, तो प्रतिपल अतीत के प्रति मरते जाओ। अतीत को मत ढोओ, अतीत के प्रति मर ही जाओ। जो नहीं हो गया--नहीं हो गया। अतीत के प्रति मर जाओ और भविष्य के प्रति बिलकुल ही रस न लो। इन दो चक्कियों के पाट के बीच ही जिंदगी दबी जा रही है--अतीत और भविष्य। जिंदगी है वर्तमान। जिंदगी है--अभी और यहां। और तुम कहीं-कहीं भटक रहे हो! अतीत की स्मृतियों में--भविष्य की कल्पनाओं में! ऐसी थी जिंदगी; ऐसी होनी चाहिए जिंदगी! और चूक रहे हो उससे--जैसी है जिंदगी। हमने छानी हैं बहुत दैरो-हरम की गलियां। मंदिरों और मस्जिदों की गलियां छानते रहो, छानते रहो--खाक मिलेगी। कहीं पाया न ठिकाना तेरे दीवाने का। पाओगे नहीं। कुछ भी न पाओगे। हूं तो मैं शम्अ, मगर भेस है परवाने का।। हुश्न है जात मेरी, इश्क सिफअत है मेरी। हूं तो मैं शम्अ, मगर भेस है परवाने का।। भेष में ही मत भटक जाना। यह शरीर तो सिर्फ वस्त्र है। यह मन भी और भीतर का वस्त्र है। उसके भीतर--शरीर और मन के भीतर जो साक्षी बैठा है, वही! हूं तो मैं शम्अ--वह ज्योति है अनंत, शाश्वत, कालातीत; मगर भेस है परवाने का! इस भेस को अगर देखोगे, तो भूल हो जाएगी। भेष कुछ है और जो भीतर छिपा है, वह कुछ
और। न तुम देह हो, न तुम मन हो। तुम चैतन्य हो। तुम सच्चिदानंद हो। तुम्हारा नाम प्यारा है पुरुषोत्तम! पुरुषोत्तम का अर्थ समझते हो! पुरुष कहते हैं, पुर कहते हैं नगर को। और पुरुष कहते हैं, उस नगर के भीतर जो बसा है उसको। पुरुष का संबंध स्त्रीपुरुष का नहीं है। स्त्री भी पुरुष है; पुरुष भी पुरुष है। पुरुष का संबंध है, यह जो नगर है मन का...। और नगर बड़ा है मन का। बड़ा विस्तार है इसका! और यह देह भी कुछ छोटी नहीं। इस देह की भी बड़ी आबादी है। बंबई की आबादी बहुत थोड़ी है। तुम्हारी देह में कोई सात करोड़ जीवाणु हैं। बंबई की आबादी तो अभी एक करोड़ भी पूरी नहीं। टोकियो की आबादी है एक करोड़। टोकियो से सात गुनी आबादी है तुम्हारी। यह देह सात करोड़ जीवित अणुओं का नगर है, विराट नगर है। इस छोटी-सी देह में बड़ा राज छिपा है। और मन का तो तुम विस्तार ही न पूछो। जमीन से आकाश के कुलाबे मिलाता रहा है। इसका फैलाव कितना है!
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