Book Title: Jyo tha Tyo Thaharaya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 197
________________ ज्यों था त्यों ठहराया जिससे तुम्हारी श्रद्धा का तालमेल बैठ जाए, मिट्टी भी थमा दे, तो औषधि हो जाती है। और जिससे तुम्हारी श्रद्धा का तालमेल न बैठा हो, तुम्हें अमृत भी पिलाए, तो जहर हो जाएगा। अगर तुम सच में ही मुझसे प्रभावित हो, तो अब सोचो मत। अगर सच में ही प्रभावित हो, तो छलांग लो। अब मत पूछो कि फिर सोचता हूं कि मैंने आपसे संन्यास लिया, तो कहीं कम्मू बाबा और उनके दिए सूफी कलाम का तिरस्कार तो न होगा! यही सम्मान होगा। तिरस्कार कैसे होगा! तिरस्कार होता ही नहीं सदगुरु का। तुम करना भी चाहो, तो नहीं होता। सदगुरु का तिरस्कार किया ही नहीं जा सकता। और यह तो कोई सवाल ही नहीं तिरस्कार का। यह तो सम्मान होगा। यह तो जहां तक यात्रा तुम्हारी रुक गई है, उससे आगे बढ़ना होगा। इससे कम्मू बाबा की आत्मा कहीं भी होगी, तो आनंदित होगी। तुम पर फूल बरसा देगी। इसमें द्वंद्व कुछ भी नहीं है। लेकिन हां, अगर कोई और द्वंद्व भीतर छिपें हों कि लोग क्या कहेंगे! वह तुम मुझसे भी नहीं कह सकते; पूछ भी नहीं सकते कि लोग क्या कहेंगे; कि मां क्या कहेगी। परिवार क्या कहेगा; साझीदार क्या कहेंगे! लौट कर बड़ौदा जाओगे, तो बड़ौदा के लोग कहेंगे, अरे! यह तुम्हें क्या हो गया! औरों की तो बात छोड़ दो, मेरे संन्यासी जब अपने घर जाते हैं, तो उनके बच्चे उनसे पूछते हैं कि पापा! आपका भी दिमाग खराब हो गया! यह आपको क्या हो गया! मेरे एक मित्र संन्यास लेकर वाराणसी गए, वहां उनका घर, पंद्रह दिन बाद उनकी खबर आई कि अस्पताल से लिख रहा हूं, क्योंकि मेरे परिवार के लोगों ने मुझे अस्पताल में भरती करवा दिया है और कारण यह है कि मैं जिंदगी भर का दुखी आदमी, उदास आदमी, जब लौटकर आया, तो नाचता हुआ आया। जब घर उतरा तांगे से, तो नाचता हुआ, गीत गाता हुआ अंदर गया! पत्नी ने कहा कि अरे, क्या पागल हो गए! घर भर के लोग इकट्ठे हो गए। मुहल्ले भर के लोग आ गए कि हो क्या गया तुम्हें! अच्छे-भले गए थे! तो उनको बहुत हंसी आई। उन्होंने कहा कि मैं अच्छा-भला गया था! अच्छा-भला होता, तो जाता ही क्यों? अरे, रोता हुआ गया था! हंसता हुआ आया हूं। मूर्यो! जब मैं रो रहा था, तब तुम कोई आए न। और अब जब मैं हंस रहा हूं, तो तुम समझ रहे हो, मैं पागल हो गया! वे तो बिलकुल ही समझ गए कि बिलकुल हो गया पागल! बिलकुल गया काम से! पकड़ कर बिस्तर पर लिटा दिया! तो उन्होंने मुझे लिखा कि मैं हंसने लगा! खिलखिलाहट छूटने लगी मुझे कि हद्द हो रही है! मजा आ रहा है! यह भी खूब रही! जिंदगी दुख में गई। कोई सहानुभूति को भी न आया। आज हंसता हुआ आया हूं, तो मुझे बिस्तर पर लिटा रहे हैं जबर्दस्ती! मुहल्ले के लोगों ने कहा, लेटो। डाक्टर को बुलाओ! अरे, मैंने कहा, क्या पागल हो गए हो! मुझे डाक्टर मिल गया! Page 197 of 255 http://www.oshoworld.com

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