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ज्यों था त्यों ठहराया
हां, बता दो। डर किसे है। और मैं भी लोगों को बता दूंगी कि तुम कोई पहले व्यक्ति नहीं हो, जिसके साथ मैं सोई थी! सचाइयां कुछ और हैं, छिपावटें कुछ और हैं! चंदूलाल ने अपनी पत्नी से कहा, आज पड़ोस वाली दुकान से कोई चीज भूल कर मत खरीदना। क्यों? पत्नी ने पूछा। इसलिए कि वह उल्लू का पट्ठा हमारा तराजू ही एक दिन के लिए मांग कर ले गया है! यहां दुकानदार दो तरह के तराजू रखते हैं: खरीदने के लिए एक तरह का तराजू, बेचने के लिए और तरह का तराजू। ट्रेन से उतरते हुए स्वामी मटकानाथ ब्रह्मचारी--(रहे होंगे तुम्हारे लटपटानंद ब्रह्मचारी जैसे ही)-ने एक छाता उठाया और बगल में दबा कर आगे बढ़ने लगे कि अचानक उन्हें एक आदमी ने पकड़ा और कहा, स्वामी जी, क्या आपका नाम नंदलाल है? जी नहीं। लेकिन क्यों? बात यह है स्वामी जी कि यह जो छाता आप ले जा रहे हैं, यह नंदलाल का है। और वह मैं
अब स्वामी जी से एकदम सीधा-सीधा कैसे कहो कि छाता चुराओ मत! तो बेचारे नंदलाल को यह रास्ता निकालना पड़ा, यूं उलटा कान पकड़ना पड़ा--कि आपका नाम नंदलाल तो नहीं है! यहां ऊपर कुछ है, भीतर कुछ है। चंदूलाल कलकत्ता गए। दोतीन महीने लग जाने वाले थे; धंधे के काम से गए थे। बड़ी चिंता थी गुलाबो की। अभी-अभी शादी हुई थी चंदूलाल की। जवान स्त्री को कैसे अकेला छोड़ जाएं? भारतीय शास्त्र कहते हैं, जब स्त्री मां-बाप के पास हो, तो पिता उसकी रक्षा करे। और जब विवाहित हो जाए, तो पति उसकी रक्षा करे। और जब बूढी हो जाए, तो बेटे उसकी रक्षा करें। क्या गजब का देश है! यहां रक्षा ही रक्षा की जरूरत है, जैसे चारों तरफ भक्षक बैठे हुए हैं! छोटी बच्ची हो, तो बाप रक्षा करे। जवान हो, तो पति रक्षा करे। बूढी हो जाए, फिर भी रक्षा की जरूरत है। क्योंकि ये जो ब्रह्मचारी घूम रहे हैं; लंगोटी कस कर बांधे हुए हैं। इनसे खतरा है ही। यह जो तथाकथित धार्मिक जाल फैला हुआ है, यह जो पाखंड फैला हुआ है--जहां मुखौटे लगाए हुए लोग बैठे हैं, इनसे डर तो है ही। यह संत-महात्माओं का देश! यह ऋषि-मुनियों का देश! यहां देवता पैदा होने को तड़पते हैं! शायद इसीलिए तड़पते हों! तो चंदूलाल चिंतित थे कि किसकी रक्षा में छोड़ जाएं पत्नी को! आखिर उन्होंने सोचा कि ब्रह्मचारी मटकानाथ, उनके गुरु, इससे योग्य और कौन आदमी होगा! यही उनकी शिक्षा कि लंगोट के पक्के रहो! इतनी शिक्षा देते हैं लंगोट के पक्के रहने की; खुद तो लंगोट के पक्के होंगे ही। और अकसर जो लंगोट के पक्के नहीं हैं, वे ही लंगोट के पक्के होने की शिक्षा देते हैं। वे जोर-जोर से चिल्ला कर तुमको ही नहीं समझा रहे हैं। अपने को भी समझा रहे हैं।
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