Book Title: Jyo tha Tyo Thaharaya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 208
________________ ज्यों था त्यों ठहराया और लटपटानंद जैसे लोगों से जा कर पूछोगे, तो वे कहेंगे, तामसी वृत्ति सात्विक आहार करो। बुरे विचारों को मन में मत आने दो। जैसे कि बुरे विचारों को मन में आने देना या न आने देना तुम्हारे वश की बात है बुरे विचार आएंगे, तो तुम क्या करोगे? और मजा तुम देखते हो एक तरफ कहते हैं, तुम्हारे स्वामी लटपटानंद ब्रह्मचारी - मन में बुरे विचार न आने दो, और लंगोट के पक्के रहो! जब बुरे विचार नहीं आते, तो लंगोट के पक्के रहने की क्या जरूरत! यह तो बड़ी उलटी बात हो गई। जब बुरे विचार आते ही नहीं, तो अब लंगोट ढीला भी रखो, तो क्या हर्जा है! लंगोट न भी पहनो, तो चलेगा। जब बुरे विचार आते ही नहीं, तो बात ही खतम हो गई जड़ ही टूट गई। अब यह लंगोट के पक्के रहने में क्या मतलब है। लेकिन इस तरह की गधापच्चीसी की बातों को धर्म समझा जाता है। और बुरे विचार न आएं, इसके लिए क्या रास्ता बताया तुम्हारे लटपटानंद ने उनके खुद भी अभी मिटे नहीं होंगे। बुरे विचार न आना सिवाय साक्षी भाव के और किसी भी तरह से समाप्त नहीं होता। ओंकार का पाठ करोगे; राम-राम जपोगे--इससे बुरे विचार बंद नहीं होंगे। क्योंकि इससे साक्षी भाव पैदा नहीं होता। यह तो सब बकवास है। यह व्यर्थ बकवास है। यह खुद ही बुरा विचार है। साक्षी भाव का तो अर्थ यह है कि जो भी विचार आते हों--बुरे कि अच्छे--जाग कर सिर्फ देखते रहो। यह विचार आया। यह उठा। यह सामने खड़ा हो गया। यह विदा होने लगा। यह गया ! यह गया । यह गया । दूसरा आ गया। जैसे रास्ते के किनारे कोई राह को चलते हुए देखे। कार गुजरी। बस गुजरी। बैलगाड़ी आई। लोग गुजर रहे हैं। इधर-उधर जा रहे हैं। तुम्हें फिक्र नहीं यह कहने की कि कौन अच्छा है, कौन बुरा है कौन साधु कौन असाधु तुम सिर्फ देख रहे हो। सिर्फ द्रष्टा मात्र। बस, इतना ही होश रखना कि मैं द्रष्टा हूं। लंगोट वगैरह बांधने की कोई जरूरत नहीं है। यह तो द्रष्टा होने से नीचे गिर जाना है। यह तो । कर्ता हो जाना है। लंगोट कस कर बांध रहा है--कौन बांध रहा है? तुमने अपने साथ जबर्दस्ती कर ली और जबर्दस्ती के परिणाम बुरे यानी दमन । तुम कर्ता हो गए। यह होने वाले हैं। जबर्दस्ती लंगोट के पक्के रहो इसका मतलब होता है जबर्दस्ती करते रहो अपने साथ अपने को कस-कस कर बांधते रहो अपने चारों तरफ जंजीरें खड़ी कर लो इससे दमन के बुरे परिणाम होने वाले हैं। और हुए हैं। यह देश जितना पाखंडी हो गया है, दुनिया में कोई देश नहीं है। ये तुम्हारे इसी तरह के गुरु, स्वामियों, तथाकथित संतों-महंतों की कृपा है कि देश पाखंड - शिरोमणि हो गया है। पृथ्वी पर कोई देश इतना पाखंडी नहीं है। क्योंकि पृथ्वी पर किसी देश में इस तरह की मूर्खताओं का इतना पुराना जाल नहीं है। चंदूलाल की अपनी पत्नी गुलाबो से एक दिन नोक-झोंक हो गई और वे गुलाबो से बोले, देखो, इस तरह अंटशंट न बको अन्यथा में सभी मित्रों को बता दूंगा कि शादी के पहले भी तुम्हारे साथ मेरे संबंध थे ! Page 208 of 255 -- http://www.oshoworld.com

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