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ज्यों था त्यों ठहराया
जरा सोचो! मान लो तो जान सकोगे--यह हमारे सारे धर्मों का आधार बन गया है। लेकिन जिसने मान लिया, वह अब क्या खाक जानेगा! अब जानने को क्या बचा? मान ही लिया। निष्कर्ष ही ले लिया। जानने में तो मुक्त मन चाहिए। कोई निष्कर्ष नहीं चाहिए। कोई धारणा नहीं। कोई विश्वास नहीं, कोई अविश्वास नहीं। जानने के लिए तो खुले मन से यात्रा करनी होती है--कि मुझे कुछ पता नहीं। जिसको पहले से ही पता है कि क्या ठीक है और क्या गलत है--वह कभी नहीं जान पाएगा। उसका गलत और ठीक--हमेशा बीच में आ जाएगा। वह वही भूल करेगा, जो योगवशिष्ट के सूत्र की है। तुमने मान लिया था; तुम चूक गए उनको जानने से। मुझे मत मान लेना--नहीं तो मुझे भी चूक जाओगे। यहां तो जानने की बात है; मानने की बात नहीं है। जानो--फिर मानना। मानना पीछे है--जानना पहले है। और कम्मू बाबा को आड़ मत बनाओ। लखनपाल! डर कुछ और हैं। लेकिन हम डरों को भी सुंदर वेश पहनाते हैं। अब तुमने कितना सुंदर वेश पहनाया! डर होगा कि कहीं मां दुखी न हो। लेकिन वह तुम न कहोगे। भय कुछ और होगा--कि लोग क्या कहेंगे! कि पागल हो गए! अजयकृष्ण लखनपाल उद्योगपति हैं--बड़े उद्योगपति हैं। मरफी रेडियो को बनाने के कारखाने के मालिक हैं। तो डरते होंगे कि लोग क्या कहेंगे! कि अजय, कृष्ण तुम भी पागल हो गए! तुम भी दीवाने हो गए! ये गैरिक वस्त्र पहन कर चले आ रहे हो! मां है। मां मुश्किल में डाल देगी। पत्नी से तो तलाक हो गया है। यह अच्छा हुआ! यह बहुत ही अच्छा हुआ! एक अड़चन तो हटी। लेकिन मां! मां दिक्कत देगी। वे तुमने सवाल नहीं उठाए। वे असली सवाल हैं। बेचारे कम्मू बाबा को क्यों घसीट रहे हो! क्यों मुर्दो को बीच में ला रहे हो! मजारों को बीच में खड़ा मत करो। जरा जांच-परख करो भीतर। और अहंकार है, जो यह कह रहा है कि तुमने कम्मू को माना था। अब बदल रहे हो? बेईमानी कर रहे हो! दगाबाजी कर रहे हो! गद्दारी कर रहे हो! यह भाषा ही राजनीति की है। यह भाषा धर्म की नहीं है। अगर तुमने कम्मू बाबा को जाना था, और वह ज्योति विदा हो गई--महाज्योति में लीन हो गई--तो मेरी तरफ गौर से देखो। वही ज्योति फिर मौजूद है। ज्योति तो हमेशा वही है। बुद्ध की हो। महावीर की हो। कृष्ण की हो। कबीर की हो। नानक की हो। ज्योति तो सदा वही है। क्योंकि सत्य एक है। इसलिए कैसा तिरस्कार! किसका तिरस्कार! तिरस्कार हो ही नहीं सकता ज्योति के जगत में। लेकिन अहंकार यह बात मानने को राजी नहीं होता कि मैंने जिसको पकड़ा था, वह भ्रांति थी; कि मैं कभी भूल कर सकता हूं कि मैंने कभी अतीत में भूल की है। अहंकार अतीत
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