Book Title: Jyo tha Tyo Thaharaya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 176
________________ ज्यों था त्यों ठहराया तो महावीर और बुद्ध ईसाइयों के लिए आदरणीय नहीं मालूम होते । कृष्ण को हिंदू पूर्णावतार कहते हैं और जैन उनको नर्क में डाल देते हैं। क्योंकि कृष्ण ने ही युद्ध करवा दिया; महाहिंसा करवा दी। अर्जुन तो बिलकुल मुनि होने के करीब ही था! वह तो सब छोड़ कर भाग रहा था, त्याग रहा था। कृष्ण उसे घसीट लाए। एक व्यक्ति को जो जैन होने के करीब था --भ्रष्ट कर दिया ! कृष्ण को दंड देना जरूरी है। अब तुम जरा देखो! हिंदू कहते हैं पूर्णावतार और उनका कहना, उनके चश्मे की बात है। पूर्णावतार इसलिए कि कृष्ण में जीवन की समयता प्रकट हुई है। राम को भी पूर्णावतार नहीं कहते हिंदू । क्योंकि राम की मर्यादा है। मर्यादा यानी सीमा कृष्ण अमर्याद हैं। उनकी कोई सीमा नहीं है। महावीर त्यागी-व्रती, मगर इनका त्याग व्रत संसार से भयभीत है। ये संसार को छोड़ कर त्याग को उपलब्ध हुए हैं, ज्ञान को उपलब्ध हुए हैं। कृष्ण तो संसार में रह कर ज्ञान को उपलब्ध हुए हैं। यह असली कसौटी है आग में बैठ रहे और परम शांति को अनुभव किया। आग से भाग गए ! भगोड़े हो ! जो कृष्ण को मानने वाला है, वह महावीर और बुद्ध को भगोड़ा कहेगा। जिंदगी में जूझो; जिंदगी चुनौती है। इस चुनौती से भागते हो --अवसर गंवाते हो। यह कायरता है। यह पीठ दिखा देना है। जैन के लिए कृष्ण नर्क में कृष्ण ने जिंदगी से पीठ नहीं दिखाई। इसीलिए अर्जुन को भी रोका कि क्या भगता है! क्या कायरपन की बातें करता है। क्या नपुंसकता की बातें करता है। क्या तू क्लीव हो गया! उठा गांडीव छोड़ यह अहंकार कि मेरे द्वारा हिंसा हो रही है। अपने को बीच से हटा ले परमात्मा का माध्यम भर हो जा। अपने अहंकार को बीच में न लगा । तो हिंदू के लिए कृष्ण पूर्णावतार हैं। उसका अपना चश्मा है। डालने योग्य हैं। अवतार की तो बात ही छोड़ो! आदमियों से भी गए बीते हैं! सभी आदमी भी नर्क में नहीं जाते। महापापी ही नर्क में जाते हैं। कृष्ण ने महापाप करवा दिया। क्योंकि जैन के हिसाब के लिए तो चींटी भी मारना पाप है। और इस व्यक्ति ने तो कोई एक अरब, सवा अरब आदमियों की हत्या करवा दी ! इसी के कारण हत्या हुई। तो इतनी बड़ी महाहिंसा का कौन जिम्मेवार होगा? अपने अपे चश्मे हैं। -- Page 176 of 255 - और मैं कहता हूँ सत्य उसको दिखाई पड़ता है, जो सारे चश्मे उतार कर रख देता है जो न हिंदू है, न मुसलमान है, न ईसाई है, न जैन है, न बौद्ध है ये तो सब भावना की बात है। तुम अपनी भावना को आरोपित कर लेते हो। तो जो तुमने आरोपित कर लिया है, जरूर दिखाई पड़ने लगता है। मगर दिखाई पड़ता है वैसा ही, जैसा सपना दिखाई पड़ता है। दिखाई पड़ता है वैसा ही, जैसे शराब के नशे में कुछ-कुछ दिखाई पड़ने लगता है। मुल्ला नसरुद्दीन रोज शराबघर जाता । चकित थे लोग कि हमेशा जब भी शराब पीने बैठता, तो अपनी जेब से एक मेंढक निकाल कर टेबिल पर रख लेता! उसने मेंढक पाला हुआ था। कई बार लोगों ने पूछा कि इसका राज क्या है? http://www.oshoworld.com

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