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ज्यों था त्यों ठहराया
पिला दो काफी की एक प्याली, दया करो हे दयालु नेता तुम्हीं दल-बदलुओं के हो बप्पा, कभी भजन हो, कभी हो टप्पा सकल भजन मंडली बुला ली, दया करो, हे दयालु नेता तुम्हीं बाढ़ हो, तुम्हीं हो सूखा, मरे न क्यों फिर किसान भूखा तुम्ही हो ट्रैक्टर, तुम्ही हो ट्राली, दया करो हे दयालु नेता पिटे तो तुम हो, उदास हम हैं, तुम्हारी दाढ़ी के दास हम हैं कभी रखा ली, कभी मुंडा ली, दया करो हे दयालु नेता
और इन नेताओं का करो भी क्या! उपयोग भी क्या है! नेता जी के पास है एक बड़ा कमाल आश्वासन देने और उसे पूरा न कर पाने के अफसोस के बीच डालते हैं जेबों में नोट निकालते हैं खाली रूमाल! तुमने जादूगर बहुत देखे होंगे; वे खाली रूमाल डालते हैं और नोट निकाल दे हैं। नेता भी जादूगर है। नोट डालता है--खाली रूमाल निकाल देता है! इन नेताओं से इतना पीड़ित है देश और यही देश नहीं--सारी दुनिया। मगर लोग इतने मूर्छित हैं कि उन्हें पता ही नहीं कि किस तरह उनकी जिंदगी को बर्बाद किया जा रहा है! कौन लूट रहा है? कौन उनके जीवन को नष्ट कर रहा है?
और मजा ऐसा है कि ये नेता सब सेवक हैं। ये नेता तुम्हारे ही हित के लिए चौबीस घंटे संलग्न हैं। और हित किसी का होता नहीं है! अहित ही अहित होता है। इतने हितेच्छू हैं। इतने हितैषी हैं। जगह-जगह, जहां देखो वहीं, गांधी टोपी लगाए हुए, शुद्ध खद्दर पहने हुए, नेतागण चले जा रहे हैं। और हित कहीं होता दिखाई पड़ता नहीं। अगर दुनिया में थोड़ी समझदारी हो, तो राजनीति अपने आप कम हो जाए। अगर दुनिया में थोड़ा-सा ध्यान का विस्तार हो, तो तुम्हें नेताओं की जरूरत न रह जाए। तुम अंधे हो, इसलिए कोई नेता चाहिए। और नेता खुद ही अंधे हैं। कबीर ने कहा है, अंधा अंधा ठेलिया, दोनों कूप पडत! अंधे अंधों को मार्गदर्शन दे रहे हैं! खुद अंधे हैं और ठेल रहे हैं अंधों को--कि चले आओ। बढ़े चलो। आगे बढ़े चलो। और कुओं में गिराएंगे, खड्डों में गिराएंगे। खड्डों में गिरा ही दिया है जगह-जगह! इनका मजाक न उड़ाओ, तो क्या करो! इनकी प्रशंसा करूं? इनके सम्मान में दो फूल चढ़ाऊं! उनकी कब्र पर चढ़ा दूंगा दो फूल। इनकी तुरबत को न तरसने दूंगा फूलों से।। मगर इन पर तो जितनी चोटें की जा सकें, करनी जरूर है। और मजाक इन पर चोट करने का एक सभ्य ढंग है। शिष्टाचार भी रह जाता है--चोट भी हो जाती है!
हा
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