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ज्यों था त्यों ठहराया
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बच्चे छोटी-छोटी बातें पूछते हैं, तो भी नहीं करने देते! छोटा सा बच्चा मां से कहता है, मैं बाहर जरा खेल आऊं? नहीं नहीं तो हमारी जबान पर रखा है नहीं का मजा है एक नहीं में ताकत मालूम पड़ती है, कि देखो, किसका बल है। नहीं हमसे एकदम निकलता है। हां बड़ी मुश्किल से निकलता है उन बातों में भी जिनमें हां निकलना ही चाहिए। अब बच्चे को बाहर खेलना है- सूरज की रोशनी में हवा में, वृक्षों के तले । नहीं कहने की क्या जरूरत है! लेकिन मां अपने नहीं के लिए भी तर्क खोजती है --कि कहीं गिर पड़े! झाड़ पर चढ़ जाए ! कुछ चोट खा जाए ! ये सब बहाने खोज रही है वह । नहीं का मजा और है मजा यह है कि कौन ताकतवर है मेरी चलती है यहां लेकिन बच्चे भी इतनी आसानी से तो नहीं छोड़ देंगे। वह बच्चा शोरगुल मचाएगा पैर पटकेगा। चीजें तोड़ेगा। किताब फाड़ देगा। आखिर में घबड़ा कर मां कहेगी कि जा बाहर खेल! यही बात बेचारा वह पहले से पूछ रहा था। मगर सीधे अंगुली घी निकलता नहीं !
तो हम छोटे-छोटे बच्चों को राजनीति सिखा देते हैं। बच्चा पूछेगा कि मित्र के घर चला जाऊं ? नहीं! तो फिर वह उपद्रव खड़े करेगा। फिर वह मौके की तलाश में रहेगा। घर में मेहमान जाएंगे, तब वह भारी उपद्रव मचा देगा । और मेहमान आने के पहले मां समझाएगी कि घर में मेहमान आ रहे हैं, देख, उपद्रव मत मचाना। मगर वही अवसर है उसके लिए निकल भागने का कि घर में जब मेहमान आए, तो वह इतना उपद्रव मचा दे कि मां को कहना ही पड़े कि जा, पड़ोस में किसी के घर में खेल हाथ जोड़ती हूं अभी तू यहां से जा! यह बेचारा वह पहले ही से कह रहा था। मगर पहले जाने न दिया। पहले नहीं का मजा लिया! तो बच्चा भी मजा चखाएगा !
बच्चे भी समझ जाते हैं धीरे-धीरे कि तुम्हारी सहने की सामर्थ्य कितनी है। हर बच्चे को पता है कि मां कितनी दूर तक बर्दाश्त कर सकती है। पिता कितनी दूर तक बर्दाश्त कर सकता है। वह वहीं तक खींचेगा। खींचता जाएगा। एक बर्दाश्त की सीमा आ जाती है। तुम्हें खुद ही कहना पड़ेगा कि बाबा, हाथ जोड़े। जा, जो करना हो कर !
मैं बचपन में बड़े बाल रखता था । मुझे बहुत शौक था बड़े बाल का । इतने बड़े बाल कि मेरे पिता को अड़चन होत थी। स्वभावतः होती थी। मैं उनकी अड़चन भी समझता था। मगर मुझे बड़े बाल पसंद थे। अब उनकी अड़चन देखूं कि अपनी पसंद देखूं !
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उनकी अड़चन यह थी कि घर में और तो कोई खास जगह थी न तो उनकी दुकान पर ही मैं बैठा रहता था। उनके ग्राहक आते, वे पूछते, यह लड़की किसकी है? इससे उनको बड़ी अड़चन होती थी, कि लड़का है और जो देखो, वही कहता है कि लड़की किसकी! तो वे मुझसे कहते कि तू बाल कटवा ले। एक दिन बहुत गुस्से में आ गए। जिंदगी में एक ही दफा उन्होंने मुझे चांटा मारा और चांटा मार दिया कि दिन भर की झंझट ! किस-किस को समझाऊं कि लड़का है--लड़की नहीं! और जो देखो, वही तुझे लड़की समझता है। ये बालों की वजह से तेरी झंझट नहीं, हमारी झंझट हुई जा रही है!
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