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ज्यों था त्यों ठहराया
लेकिन अजीब अंधे लोग हैं। मंदिर भी जाते हैं, मसजिद भी जाते हैं, गुरुद्वारा भी जाते हैं, तो वहां भी शिकायत है। प्रार्थना भी उनकी शिकायत का ही एक ढंग है--कि हे प्रभु, ऐसा कर, वैसा कर। ऐसा क्यों नहीं किया! मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं कि हम नैतिक रूप से जीते हैं। सादगी से जीते हैं। फिर असफलता क्यों? और जो बेईमान हैं, अनैतिक हैं--वे सफल क्यों? यह शिकायत है, यह शिकवा है। शिकवा बेसूद शिकायत से भला क्या हासिल। यह सिर्फ इस बात की गवाही है कि तुम्हें अभी भी श्रद्धा नहीं है। तुम्हारी श्रद्धा भी तुम्हारी वासना का ही रूप है। और श्रद्धा और वासना का क्या तालमेल! तुम प्रार्थना भी करते हो, तो कुछ मांगते हो। वहां भी तुम भिखारी ही हो। न पूछो कौन हैं, क्या मुद्दआ है, कुछ नहीं बाबा। गदां हैं और जेरे-सायाए-दीवार बैठे हैं।। वहां भी तुम भिखारी ही हो। प्रार्थना भिखमंगापन नहीं है। प्रार्थना आनंद-उल्लास है। प्रार्थना नृत्य है, गीत है, उत्सव है। प्रार्थना महोत्सव है। प्रार्थना धन्यवाद है--अनुग्रह का भाव है। श्रद्धा हो, प्रार्थना हो--जरूर सत्यप्रेम, वह अपूर्व घटना तुम्हारे जीवन में भी घटेगी--जो मेरे जीवन में घटी है। मेरे जीवन में घट सकती है, तो तुम्हारे जीवन में घट सकती है। हम सब एक जैसे निर्मित
हुए हैं।
इस देश में और इस देश के बाहर भी, धर्म के इतिहास में जो सबसे बड़े दुर्भाग्य की घटना घटती है, वह यह कि हमने जिन लोगों के जीवन में ज्योति प्रकट हुई, उनको ही मनुष्य जाति से तोड़ दिया। हिंदुओं ने कह दिया, वे अवतार हैं। जैनों ने कह दिया--वे तीर्थंकर हैं। बौद्धों ने कह दिया, वे बुद्धपुरुष हैं। मुसलमानों ने कह दिया, वे पैगंबर हैं! ईसाइयों ने कह दिया, वे ईश्वर-पुत्र हैं! हमने आदमी से उनको अलग कर दिया। इसका एक दुष्परिणाम होना था--हआ। भयंकर दुष्परिणाम हुआ। जब तुम तीर्थंकर, अवतार, ईश्वर-पुत्र, मसीहा, पैगंबर--इस तरह जिनके जीवन में ज्योति आई, उनको अलग कर देते हो, तो साधारण आदमी को क्या आशा रह जाए! साधारण आदमी सोचता है: मैं तो साधारण आदमी हूं; ईश्वर-पुत्र नहीं पैगंबर नहीं, तीर्थंकर नहीं, अवतार नहीं। मेरे जीवन में तो अंधेरा ही बदा है। मेरी तो किस्मत में अंधेरा ही लिखा है। मेरी रात की तो काई सुबह नहीं होने वाली। और अगर महावीर को हुई, तो कोई खूबी की बात क्या! वे तीर्थंकर थे। वे कोई साधारण पुरुष न थे। वे तो आए ही थे--परम सत्य से ही जन्मे थे। अगर जीसस के जीवन में वह ज्योति जगी, तो वे तो ईश्वर के बेटे थे! और ईसाई जोर देते हैं कि ईश्वर का एक ही बेटा है--जीसस। इकलौता बेटा है, ताकि साफ हो जाए तुम्हें कि तुम इस भ्रांति में मत रहना कि तुम भी ईश्वर के बेटे हो।
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