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ज्यों था त्यों ठहराया
सम्राट को थोड़ा तो शक हुआ। वह भी कुछ कम चालबाज तो न था। देवताओं के वस्त्र! उस आदमी ने कहा कि आप सोचते होंगे कि यह बात सच नहीं। कर के दिखा दे सकता हूं। ला सकता हूं। लेकिन खर्च बहुत है! सम्राट ने कहा कि खर्च की कोई फिक्र नहीं। लेकिन अगर धोखा देने की कोशिश की, तो गर्दन उतार लूंगा। तो यह पड़ोस का महल है मेरा, इसमें चला जा। क्या करना है? कितना खर्च है? उसने कहा, खर्च काही लगेगा। क्योंकि वहां भी रिश्वत चलती है। द्वारपाल से लेकर पहुंचतेपहंचते देवताओं के वस्त्रों तक बहुत खर्च हो जाएगा। करोड़ों का खर्च है। खर्च की बात करते हों, तो यह बात ही छोड़ दें। खर्च की तो पूछे मत। जितना मांगूंगा, उतना देना पड़ेगा। सम्राट ने कहा, ठीक है। लेकिन ध्यान रखना: भागने की कोशिश मत करना। इसी महल के भीतर रहना पड़ेगा। बाहर पहने लगवा दिए, फौजों के घेरे डलवा दिए कि यह आदमी भाग न सके। और रोज वह आदमी कभी करोड़ मांगे, कभी दो करोड़ मांगे। पता नहीं अंदर क्या करता था--द्वार-दरवाजे बंद कर के। पर सम्राट ने कहा जाएगा कहां भाग कर! धन भी कहां ले जाएगा! और पंद्रह दिन बाद उसने खबर भेजी कि वस्त्र ले आया हूं। दरबार भर गया। वह आदमी एक बड़ी सुंदर मंजूषा में वस्त्र ले कर आया। उसने आ कर मंजुषा रखी और सम्राट से कहा, वस्त्र तो ले आया। लेकिन देवताओं ने कहा कि एक शर्त है। ये साधारण वस्त्र नहीं--देवताओं के वस्त्र हैं। ये उन्हीं को दिखाई पड़ेंगे, जो अपने ही बाप से पैदा हए हैं! सम्राट ने कहा, इसमें क्या अड़चन है। यह शर्त स्वीकार है। उसने पेटी खोली। सम्राट को उसमें कुछ दिखाई न पड़ा। पेटी बिलकुल खाली थी; दिखाई पड़ता भी कैसे? उसने कहा, महाराज, आपकी पगड़ी दें और यह देवताओं की पगड़ी लें। खाली हाथ! अब सम्राट अगर यह कहे कि मुझे दिखाई नहीं पड़ता कि इसमें कहां पगड़ी है-- तो सिद्ध होगा कि अपने बाप से पैदा नहीं हुआ। बड़ा हैरान हुआ। और दरबारी एकदम से प्रशंसा करने लगे कि अहा! क्या पगड़ी हैं! किरणों का जाल! चांदत्तारे जड़े हैं! ऐसी पगड़ी नहीं देखी। धन्य हो गए देख कर। सब दरबारियों को दिखाई पड़ रही है! सम्राट ने कहा, अब अगर मुझे दिखाई न पड़े, तो जाहिर है कि मैं अपने बाप से पैदा नहीं हुआ! सो देखनी पड़ी पगड़ी! जो पगड़ी दिखाई पड़ती थी, उसे बेईमान को दे दी। उसने उसे तो पेटी में डाल दिया। और जो पगड़ी थी ही नहीं, वह सम्राट के सिर पर रख दी और कहा कि महाराज, अब शोभा देखते बनती है! वर्णन नहीं हो सकता इस शोभा का! तालियां पिट गईं, क्योंकि दरबारियों ने भी एक दूसरे से होड़ बांधी। किसी को दिखाई नहीं पड़ रही थी पगड़ी। और जो थोड़ा झिझके--झिझकने ही से साबित हो जाए। तो तालियां जोर से पिटी और एक दूसरे से होड़ लग गई प्रशंसा में, क्योंकि जो जरा चुप रह जाए, कहीं शक हो जाए कि यह आदमी चुप क्यों खड़ा है! और सबको यह लगा--सबको भीतर यह
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