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ज्यों था त्यों ठहराया
मैंने सुना कि एक रात चंदूलाल पड़ोस के गांव में किसी शादी में सम्मिलित होने गए। कोई तीन मील जाने के बाद उनको खयाल आया कि दीया जलता हुआ छोड़ आए; पता नहीं यह नालायक लड़का बुझाए कि न बुझाए! ऐसे ही सो जाए! रात भर तेल जलता रहे। और मुझे लौटते-लौटते सुबह हो जाएगी! सो वे लौट कर आए। दरवाजा खटखटाया; लड़के ने दरवाजा खोला। उन्होंने कहा कि दीया बुझा दिया कि नहीं रे! उसने कहा, आप भी क्या बातें कर रहे हैं! आपका बेटा--और मैं दीया न बुझाऊं! अरे, आप इधर बाहर हुए कि मैंने दीया बुझा दिया। आप इतनी दूर कैसे आए! और आपको शर्म न लगी--तीन मील गए, तीन मील आए, जूता घिस जाएगा! चंदूलाल ने कहा, तूने मुझे क्या समझा है रे! देख, जूता बगल में दबाए हुए हूं। जूता कैसे घिसेगा? पैर घिस जाएं, मगर जूता नहीं घिस सकता! मारवाड़ी की अपनी दुनिया है! डाक्टर साहब, अब मेरा बेटा झुम्मन कैसा है? चंदूलाल ने उदास आवाज में पूछा। डाक्टर ने कहा, घबड़ाने की कोई बात नहीं। धीरज रखिए सेठ जी! उसे नकली सांस दी जा रही है। सेठ चंदूलाल गरज कर बोले, धीरज कैसे रखू जी! सरासर बेईमानी हो रही है। अरे, जब मैंने असली सांस के पैसे चुकाए हैं, तो फिर नकली सांस क्यों दी जा रही है? सेठ चंदूलाल को उसके कुछ मित्र दोपहर को मिलने आए। द्वार पर उनके नौकर पोपटलाल ने उनका स्वागत किया। तो मित्रों ने पूछा, सेठ जी कहां हैं? पोपटलाल ने उत्तर दिया, सेठ जी डिनर खा रहे हैं। डिनर खा रहे हैं! डिनर तो रात का खाना होता है--दिन का नहीं! एक मित्र ने चौंककर कहा। वह तो मुझे भी अच्छी तरह मालूम है। लेकिन वे रात का बचा हुआ खाना ही खा रहे हैं, पोपटलाल ने कहा। सेठ चंदूलाल मारवाड़ी समुद्रतट पर चहलकदमी कर रहे थे कि अचानक एक जोर का तूफान आया और चंदूलाल के छोटे बेटे झुम्मन को उठा कर समुद्र में ले गया। दो सेकेंड में ही सागर की लहरों में उठता-गिरता झुम्मन हवा के वेग के साथ इतनी दूर निकल गया कि उसका दिखना भी बंद हो गया। चंदूलाल के प्राण सूखने लगे। झट उन्होंने आकाश की ओर हाथ जोड़ कर कहा, हे परम पिता परमात्मा, मेरे बेटे को बचा लो। हे करुणा के सागर, मुझ पर कृपा करो। मेरा सब कुछ लुटा जा रहा है! उनका इतना कहना ही था कि एक चमत्कार घट गया। समुद्र में एक बड़ी लहर उठी और वह लहर झुम्मन को किनारे पर पटक गई। चंदूलाल ने अपने बेटे को एक नजर में ऊपर से नीचे तक देखा, गौर से देखा, फिर से देखा--और ईश्वर को क्रोध भरे स्वर में कहा, इसीलिए तो मुझे तुझ पर श्रद्धा नहीं होती। मेरी एक भी प्रार्थना नहीं सुनता। तू खुद सोच, मैं भला नास्तिक न होऊं, तो और क्या होऊं! तुझे मेरी जरा भी फिक्र नहीं। अब यही
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