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ज्यों था त्यों ठहराया
तुमने नचिकेता की कथा तो जानी। कठोपनिषद उसी कथा से शुरू होता है। बूढा बाप यज्ञ किया है और दान कर रहा है। नचिकेता, छोटा-सा बच्चा, उसके पास ही बैठा है। बूढा बाप समृद्ध है, सम्राट है, और दान क्या कर रहा है! जिन गायों ने दूध देना बंद कर दिया, वे दान कर रहा है। उन गायों को दान कर रहा है! तो बेटा देखता है कि यह क्या धोखा हो रहा है! यह कैसा दान? गाएं जो दूध देती ही नहीं--यह दान हुआ, कि जिसको दे रहे हो, उसकी फांसी लगा रहे हो? तो वह पूछता है बाप को कि आप यह क्या कर रहे हैं? ये गाएं दूध तो देती नहीं, इनको दान देने से क्या फायदा? बाप तिलमिला जाता है। बाप कभी बर्दाश्त नहीं करता। बेटे की स्वच्छ दृष्टि देख पा रही है कि मामला क्या है यह! यह कैसा दान? क्रोध में बाप कहता है, ज्यादा बकवास मत कर, नहीं तो तुझे भी दान कर दूंगा! नचिकेता सीधा-सा बच्चा, वह यही पूछने लगा बार-बार कि मुझे कब दान करिएगा? अब तो यज्ञ भी समाप्त हुआ जा रहा है, मुझे कब दान करिएगा? मुझे किसको दान करिएगा? बाप ने क्रोध में कहा, तुझे मृत्यु को दान कर दूंगा। अब यह क्रोधी आदमी--यह दान कर रहा है; यज्ञ कर रहा है! और इसके खरीदे हुए ब्राह्मण, पंडित-पुरोहित यशगान कर रहे हैं! स्तुतियां गा रहे हैं--कि तुम महादानी हो! वह बेटा देखता है--यह कैसा दान! उसकी समझ के बाहर है। क्योंकि अभी उसके पास देखने वाली दृष्टि है। बड़ों को जो नहीं दिखाई पड़ता, वह बच्चों को दिखाई पड़ जाता है। बाप का क्रोध--ऐसा क्रोध कि बेटे को कहता है कि मृत्यु को दे दूंगा। प्रसिद्ध कथा है कि एक बहुत चालबाज आदमी ने एक सम्राट को कहा कि आपके पास सब है। सारी दुनिया की दौलत है। जो भी इस पृथ्वी पर सुंदरतम है, आप उसके मालिक हैं। लेकिन एक चीज की कमी रह गई। कहें तो पूरी कर दूं। सम्राट उत्सुक हुआ। उसने कहा, किस चीज की कमी रह गई? वह हमेशा उत्सुक था इस बात में कि किसी चीज की कमी न रह जाए। कौन उत्सुक नहीं है! फिर वह तो सम्राट था-- चक्रवर्ती सम्राट था। सारी पृथ्वी जीत चुका था। उसके भंडारों में हीरे-जवाहरात भरे थे। दुनिया में किसी के पास इतनी संपदा न थी। तो कोई चीज की कमी रह गई--यह बात उसे अखरी। उसके अहंकार को चोट पड़ी। उसने कहा, बोल, कौन-सी चीज की कमी है? जो भी मूल्य हो, मैं चुकाने को राजी हूं। उसने कहा, मूल्य तो बहुत लगेगा। उसने कहा, उसकी फिक्र ही मत कर। तू बोल, चीज कौन-सी है, जिसकी कमी है? उस चालबाज आदमी ने कहा...। रहा होगा कोई राजनीतिज्ञ, कोई कूटनीतिज्ञ कोई बिलकुल छंटा हुआ बदमाश--उसने कहा कि महाराज, यह शोभा नहीं देता कि आप साधारण मनुष्यों जैसे वस्त्र पहनें। ये वस्त्र तो कोई भी पहन रहा है। आपके लिए तो स्वर्ग से वस्त्र ला सकता हूं देवताओं के। वही आपके योग्य है।
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