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ज्यों था त्यों ठहराया
ईश्वर की तसवीर कोई भी बना सकता है और विवाद हो नहीं सकता। क्या विवाद करोगे! मूल का ही पता नहीं है, तो तसवीर को कैसे जांचोगे कि सही कि गलत? जैन कहते हैं--सात नर्क हैं। हिंदू तो एक ही नर्क से राजी हैं। जैन कहते हैं--सात नर्क हैं! उस समय जब महावीर ने जन्म लिया, संजय वेलठ्ठिपुत नाम का एक बहुत अदभुत विचारक था। जब उससे किसी ने जा कर कहा कि जैन कहते हैं कि सात नर्क हैं! उसने कहा कि गलत। सात सौ नर्क हैं। कैसे तय करोगे कि एक हैं कि सात हैं कि सात सौ नर्क हैं। राधा स्वामी संप्रदाय के मानने वाले एक व्यक्ति ने मुझे आ कर पूछा कि आपका क्या खयाल है! हमारे गुरुओं का वचन है कि स्वर्ग चौदह खंडों में बंटा है। चौदह खंड हैं। अंतिम खंड-- सत्य खंड--सच्च खंड--चौदहवां। और सिर्फ हमारे गुरु चौदहवें तक पहुंचे हैं। बाकी अच्छे लोग हुए। लेकिन कृष्ण भी बस सातवें तक पहुंचे। राम भी बस छठवें तक पहुंचे। महावीर और बुद्ध पांचवें तक पहुंचे। मोहम्मद और जीसस तो चौथे ही तक पहुंचे। सिर्फ इनके गुरु, जिनका नाम भी किसी को पता नहीं, वे भर चौदहवें तक पहुंचे! मैंने कहा कि तुम्हारे गुरु बिलकुल ठीक कहते हैं। वे चौदहवें ही में हैं। उन्होंने कहा, मतलब! मैंने कहा कि पंद्रह हैं। मैं पंद्रहवें में बैठा हुआ हूं। उनको देख रहा हूं लटका हुआ--चौदहवें में! वे मुझसे पूछते हैं बार-बार कि पंद्रहवें तक कैसे आऊं? उन्होंने कहा, आप भी क्या बात कर रहे हैं! अरे, किसी ने पंद्रह पहले बताए नहीं नहीं! मैंने कहा, बताते ही वे कैसे? जब पंद्रह तक कोई पहुंचेगा, तभी बताएगा न। जैसे तुम्हारे गुरु ने चौदह बताए--जब चौदहवें तक पहुंचे। अब बेचारे महावीर कैसे बताएं! वे अगर पांचवें ही में अटके हैं...। कोई छठवें में अटका है। कोई सातवें में अटका है। कृष्ण से पूछोगे चौदहवें की, तो वे कैसे बताएंगे! सातवें की बता सकते हैं बहुत से बहुत। अब मैं पंद्रहवें तक पहुंचा, तो पंद्रहवें की बता रहा हूं। और तुम्हारे गुरु चौदहवें में ही अटके हैं। वे मुझसे पूछते हैं बारबार कि पंद्रहवें तक कैसे आएं! वे तो बड़े नाराज हो गए। मैंने कहा, तुम थोड़ा सोचो, ये बच्चों जैसी बातों में उलझे हुए हो। बचकानी बातों में उलझे हए हो। और इसको ज्ञान समझे हो! और बच्चों को समझा रहे हो कि सच बोलो। अच्छे काम करो। कौन-सा काम अच्छा है? किस काम को तुम अच्छा कहते हो? किस कसौटी पर कसते हो? गऊ-माता की सेवा करना अच्छा है? तो गऊ-भक्त हैं इस देश में! आदमी को जीना मुश्किल हो रहा है--गऊ की चिंता पड़ी है! और गऊएं मर रही हैं, सड़ रही हैं। जैसा इस देश में सड़ रही हैं--दुनिया में कहीं नहीं सड़ रही हैं! दुनिया भर में गाएं स्वस्थ हैं, सुंदर हैं। कितना दूध देती हैं दुनिया में गाएं। और ये गऊमाता के भक्त--पुरी के शंकराचार्य से लेकर गुजरात के शंभू महाराज तक--ये सारे के सारे गऊ-माता के भक्त। और दूध गाय देती है आधार सेर! स्वीडन में देती है चालीस सेर। और कोई गऊ-भक्त नहीं। गऊएं भी खूब हैं! बेटों पर नाराज होती हैं। भक्तों पर बिलकुल प्रसन्न ही नहीं हैं।
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